नागपुर में एक स्कूली छात्रा से सामूहिक बलात्कार की वारदात से यौन अपराधों मेंं किशोरों की बढ़ती संलिप्तता फिर उजागर हुई है। इस जुर्म को अंजाम देने वाले पांच लोगों मेंसे चार नाबालिग हैं। ऐसे अपराधों में आमतौर पर वयस्क ज्यादा शामिल पाए जाते थे लेकिन अब नाबालिग भी इस घृणित अपराध को खूब अंजाम दे रहे हैं जो बेहद चिंताजनक है। इस वारदात में शामिल सभी नाबालिग गिरफ्तार कर सुधार गृह भेज दिए गए हैं लेकिन वे वजहें गिरफ्त से दूर हैं जो नाबालिगों को बड़ी संख्या में यौन अपराधों की दहलीज तक ले जा रही हैं। समूचे देश को दहला देने वाले निर्भया कांड में पीड़िता के साथ सबसे ज्यादा बर्बर सलूक एक नाबालिग का ही पाया गया था। उसकी क्रूरता और अपराध की साजिश में सहभागिता शातिर अपराधियों को भी मात करने वाली थी।

लेकिन अवयस्क होने के चलते मिले कानूनी कवच के कारण उसे सुधार गृह में रखा गया और अठारह साल की उम्र होने के बाद रिहा कर दिया गया। इस रिहाई से उठे सवालों के बीच अब किशोर न्याय कानून में संशोधन कर दिया गया है। इसके मुताबिक सोलह से अठारह साल के बीच आयु के नाबालिग पर भी, उसके अपराध की गंभीरता को देखते हुए, वयस्कों के लिए बने कानून के अंतर्गत मुकदमा चल सकेगा और दस साल तक की सजा हो सकती है। यह कानून बनने के बाद कहा गया था कि अब नाबालिग अपराधियों में पैदा होने वाला जेल जाने का खौफ उनके कदमों को अपराध की डगर पर जाने से रोकेगा, लेकिन अफसोस कि ऐसा होता नजर नहीं आ रहा है। इससे स्पष्ट है कि बाल अपराधों को कानून का घेरा कसने या सजा का दायरा बढ़ाने भर से रोका या कम नहीं किया जा सकता। इसके लिए तो बचपन की सतत सार-संभाल और देखरेख की जरूरत है जिसका अभिभावकों की व्यस्तता के चलते इन दिनों अभाव ही नजर आता है।

देश में बढ़ते यौन अपराधों पर अरसे से चिंता जताई जा रही है लेकिन यह कड़वी हकीकत है कि उनमें कमी आने के बजाय वृद्धि ही हो रही है। दुधमुंही बच्चियों से लेकर वृद्धाओं तक को हवस का शिकार बनाने की खबरें आती रहती हैं। बलात्कार और अन्य यौन अपराधों में इजाफे के लिए लड़कियों-महिलाओं के कथित उत्तेजक पहनावे, चाल-ढाल, टीवी, फिल्मों या इंटरनेट पर पसरी अश्लीलता और सहज सुलभ यौन सामग्री को जिम्मेदार बता कर आखिर हम समाज की विकृत यौन मानसिकता से कब तक नजरें चुराते रहेंगे? बालिगों के कुंठित यौनोन्माद की छाया नाबालिगों पर भी पड़ रही है जो उनके यौन अपराधों में नजर आ रही है। पुलिस रिकार्ड के मुताबिक लगभग पचास फीसद यौन अपराधों में सोलह साल से कम उम्र के किशोर शामिल पाए जाते हैं।

राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों की गवाही लें तो किशोरों के यौन अपराधों में ग्यारह फीसद की रफ्तार से बढ़ोतरी हो रही है। यह रफ्तार निश्चय ही विस्फोटक है, जिसे तुरंत रोका जाना जरूरी है। बचपन बचाओ, बेटी बचाओ, महिला कल्याण या स्त्री सशक्तीकरण के तमाम नारे भी अगर हमारे सामाजिक परिवेश में बच्चियों-स्त्रियों के प्रति संवेदना नहीं जगा सके हैं तो क्या हमें आत्ममंथन नहीं करना चाहिए?किसी समाज के सभ्य होने का एक प्रमुख मापदंड स्त्रियों के प्रति उसके व्यवहार को बनाया जाना चाहिए। इस कसौटी पर नाबालिगों से लेकर बालिग तक जब तक खरे नहीं उतरेंगे तब तक यौन अपराधों में कमी की उम्मीद कैसे की सकेगी?