ब्रिटेन की लेबर पार्टी की सांसद जो कॉक्स की दिनदहाड़े हुई हत्या ने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया है। उनकी हत्या की खबर मिलते ही बाकी दुनिया से भी शोक और चिंता भरी प्रतिक्रियाएं आर्इं। ब्रिटेन मानवाधिकारों, सहिष्णुता और उदारता जैसे लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए जाना जाता है। असहमति और विरोध को वहां जिस सहजता से लिया जाता है वह एक मिसाल है। जो कॉक्स की हत्या की खबर पाकर जिस तरह दोनों पक्षों ने जनमत संग्रह की बाबत अपने अभियान लगातार दूसरे दिन भी स्थगित रखे, वह उनकी शोकाकुल मन:स्थिति को बयान करता है, पर यह आशंका भी होती है कि कहीं इससे उन्मादी तत्त्वों का हौसला तो नहीं बढ़ेगा?

पिछले साल सांसद चुने जाने से पहले कोई एक दशक तक कॉक्स ने प्रसिद्ध सहायता-संस्था आॅक्सफैम के साथ काम किया। वे दासता-विरोधी संगठन फ्रीडम फंड और बिल ऐंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन से भी जुड़ी थीं। कमजोर तबके के प्रति उनमें गहरी हमदर्दी थी। ब्रिटेन की राजनीति में उन्हें एक नई उम्मीद की तरह देखा जा रहा था। खबरों के मुताबिक हमलावर ‘ब्रिटेन फर्स्ट’ नामक एक दक्षिणपंथी संगठन से ताल्लुक रखता है, जो आप्रवासियों के खिलाफ जहर उगलता रहा है और चाहता है कि ब्रिटेन यूरोपीय संघ से नाता तोड़ ले। अलबत्ता इस संगठन ने कॉक्स की हत्या में अपना हाथ होने से इनकार किया है। पर अभी तक जो बातें सामने आई हैं वे इसी ओर इशारा करती हैं कि यह एक घृणा-जनित अपराध था। इससे पहले, अमेरिका के ओरलैंडो में चरम असहिष्णुता से होने वाले जनसंहार से दुनिया दहल चुकी है। अमेरिका और ब्रिटेन को अपने लोकतांत्रिक समाज होने पर नाज रहा है। पर वहां भिन्न विचारों और भिन्न जीवन शैली को सहन न करने के उन्माद में जैसी घटनाएं हुई हैं वे गहरी चिंता का विषय हैं।

ब्रिटेन 1972 में यूरोपीय संघ से जुड़ा था; अलबत्ता तब उसका नाम यूरोपीय आर्थिक समुदाय था। अगले हफ्ते वहां इस बात पर जनमत संग्रह होना है कि ब्रिटेन यूरोपीय संघ में बना रहे या उससे अलग हो जाए। जो कॉक्स ब्रिटेन के यूरोपीय संघ में बने रहने की पक्षधर थीं और हत्या से पहले वे अपने निर्वाचन क्षेत्र में लोगों को यही समझाने में जुटी थीं कि यूरोपीय संघ में ब्रिटेन के बने रहने में ही भलाई है। यूरोपीय संघ से अलगाव चाहने वाले दल और समूह आप्रवासियों की तादाद बढ़ते जाने और इसके फलस्वरूप ब्रिटेन के लोगों के लिए रोजगार की संभावनाओं पर प्रतिकूल असर पड़ने की दलील देते रहे हैं।

पर कॉक्स का कहना था कि ब्रिटेन में आए आधे से अधिक आप्रवासी गैर-यूरोपीय मूल के हैं, इसलिए यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के अलग होने से कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा। कुछ सर्वेक्षण यूरोपीय संघ से संबंध बरकरार रखने वाले पक्ष का पलड़ा भारी बताते हैं तो कुछ अलग होना चाहने वाले पक्ष का। कॉक्स की हत्या के बाद जनमत संग्रह पर क्या असर पड़ेगा, कहना मुश्किल है। पर जनमत संग्रह का नतीजा जो हो, यह घटना लोकतंत्र के हर शुभचिंतक के लिए बहुत आहत करने वाली है कि जहां अपने मत का इजहार करने की पूरी आजादी है वहां एक असहमत व्यक्ति की क्रूरता ने एक सांसद की जान ले ली।