केंद्रीय मंत्रिमंडल के विस्तार को लेकर पिछले कुछ दिनों से चल रही उत्सुकता पर मंगलवार को विराम लग गया। पांच मंत्रियों को मंत्रिमंडल से विदा करने के साथ उन्नीस नए मंत्री बनाए गए हैं। सबके सब कनिष्ठ या राज्य-स्तर के। पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाल रहे प्रकाश जावडेकर की पदोन्नति हो गई, उन्हें कैबिनेट दर्जा मिल गया है। इस मंत्रिमंडल विस्तार में, जैसा कि अनुमान था, उन राज्यों का ज्यादा ध्यान रखा गया है जहां विधानसभा चुनाव होने हैं। नए मंत्री अलग-अलग कुल दस राज्यों से ताल्लुक रखते हैं। इनमें से तीन गुजरात और तीन उत्तर प्रदेश सेहैं, और एक उत्तराखंड से। सामाजिक समीकरण दूसरा पहलू है जिसे इस विस्तार में महत्त्व मिला है। नए मंत्रियों में दो अनुसूचित जनजाति से हैं तो पांच दलित। दो अल्पसंख्यक। दो महिलाएं। हो सकता है इसे भी चुनावी गणित से जोड़ कर देखा जाए।

राजग के घटकों के लिहाज से देखें तो अपना दल और रिपब्लिकन पार्टी को इस विस्तार में मौका मिला है। पर इसी के साथ रामदास आठवले के रूप में मोदी ने दलित समीकरण साधने की कोशिश की है तो अपना दल की अनुप्रिया पटेल के जरिए उत्तर प्रदेश के कुर्मी समुदाय को रिझाने की। कई चेहरे ऐसे भी हैं जो किसी न किसी क्षेत्र में विशेषज्ञ की हैसियत रखते हैं। लिहाजा, अनुभव और दक्षता का भी ध्यान रखा गया है। पर ‘मिनिमम गवर्नमेंट मैक्सिमम गवर्नेन्स’ यानी न्यूनतम सरकार अधिकतम शासन के प्रधानमंत्री मोदी के वादे का क्या हुआ? ताजा विस्तार के साथ केंद्रीय मंत्रियों की कुल तादाद अठहत्तर तक पहुंच गई है, जो कि अधिकतम सीमा से सिर्फ चार कम है। संविधान के 91वें संशोधन ने यह अनिवार्य कर दिया कि मंत्रियों की संख्या निचले सदन की कुल सदस्य संख्या के पंद्रह फीसद से ज्यादा नहीं हो सकती। लिहाजा, केंद्र सरकार के लिए यह सीमा बयासी मंत्रियों की है।

मोदी ने 2014 में पैंतालीस मंत्रियों के साथ अपना कार्यकाल शुरू किया था। तब मंत्रिमंडल के छोटे आकार को बेकार के तामझाम से बचने और शासन की नई शैली के रूप में पेश किया जा रहा था। पर ‘मिनिमम गवर्नमेंट’ का जो दम भरा जा रहा था उसकी हवा निकल गई है। मोदी की टीम में अब उतने ही लोग हैं जितने मनमोहन सिंह की टीम में थे। कांग्रेस के साथ समस्या यह थी कि उसका अकेले बहुमत नहीं था, सरकार चलाने के लिए उसे यूपीए के अन्य तमाम घटकों को खुश रखना पड़ता था। पर भाजपा को लोकसभा में अपने बूते बहुमत हासिल है। फिर, मोदी को अपने मंत्रिमंडल का आकार वहां तक ले जाने की जरूरत क्यों पड़ी, जो उनके वादे के उलट है? जहां तक सरकार के कामकाज का सवाल है, उसका रिकार्ड मिश्रित ही कहा जा सकता है। जीडीपी का ग्राफ कुछ ऊपर ले जाने और राजकोषीय घाटे को कम करने में सरकार सफल हुई है, पर निर्यात के क्षेत्र में लगातार बुरा हाल है, रोजगार सृजन के मोर्चे पर भी। विदेश नीति में कुछ कामयाबियां मिली हैं तो कई बार मायूस भी होना पड़ा है। प्रशासनिक सुधार की दिशा में अब तक कोई खास पहल नहीं हो पाई है। नयों से जो उम्मीदें बांधी गई हैं वे कहां तक पूरी होंगी यह तो बाद में पता चलेगा, पर यह अच्छी बात है कि विवादास्पद बयान देने वाले मंत्रियों की छुट्टी कर दी गई।