महाराष्ट्र में सरकार बनाने को लेकर महीने भर से जिस तरह की जोड़तोड़ और उठापठक वाली गतिविधियां चल रही थीं, उन पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद विराम लग गया और नए गठबंधन के लिए सरकार बनाने का रास्ता साफ हो गया। भारत की राजनीति में ऐसा पहले शायद ही हुआ हो जब विधानसभा चुनाव के बाद सरकार बनाने के लिए किसी राज्य में राजनीतिक दलों ने सारी नैतिकता और मर्यादाताओं को तार-तार करते हुए विचारधाराओं तक को ताक पर रख दिया और जनादेश का अपमान किया।
मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कहा कि विश्वासमत हासिल करने में जितनी देर होगी, उतनी ही विधायकों की खरीद-फरोख्त की आशंका बढ़ेगी, इसलिए बुधवार शाम तक मुख्यमंत्री सदन में विश्वासमत हासिल करें। मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री दोनों इस हकीकत से अच्छी तरह वाकिफ थे कि उनके पास बहुमत है नहीं और बुधवार शाम तक इसका जुगाड़ कर भी नहीं पाएंगे, इसलिए उन्होंने पहले ही इस्तीफा देने में भलाई समझी। अब राज्य में सरकार बनाने के लिए शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस का गठबंधन सरकार बनाने का दावा पेश करेगा। सरकार भले कोई बनाए, लेकिन महाराष्ट्र के राजनीतिक घटनाक्रम ने राजनीतिक दलों को तो कठघरे में खड़ा कर दिया है।
सत्ता हासिल करने के लिए महाराष्ट्र में जिस तरह का खेल चला, वह राजनीति में अवसरवाद और सौदेबाजी की नई मिसाल है। चुनाव नतीजों के बाद एक पखवाड़े तक भाजपा और उसकी ढाई दशक पुरानी सहयोगी शिवसेना में मुख्यमंत्री पद को लेकर लंबी लड़ाई चली। दोनों ने इसे नाक का सवाल बना लिया था। इसके बाद शिवसेना ने राकांपा और कांग्रेस का समर्थन मांगा। भाजपा किसी भी सूरत में शिवसेना को मुख्यमंत्री पद देने को तैयार नहीं थी, लेकिन उसने सरकार बनाने के लिए अपनी धुर विरोधी राकांपा से हाथ मिलाने तक में परहेज नहीं किया और अंत में सौदेबाजी के तहत अजित पवार को उपमुख्यमंत्री तक बना डाला।
हैरानी की बात तो यह है कि चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा ने राकांपा को ‘नेशनल करप्ट पार्टी’ (एनसीपी) करार देते हुए एलान किया था कि अगर वह सत्ता में आई तो अजित पवार जेल में चक्की पीसेंगे। पर आज सत्ता के लिए उन्हीं अजित पवार का हाथ थामते हुए भाजपा को जरा भी हिचक नहीं हुई। इसी तरह कांग्रेस और शिवसेना दोनों ही विचारधारा के स्तर पर धुर विरोधी हैं, कांग्रेस जहां मुसलमानों की हमदर्द होने का दावा करती आई है, वहीं शिवसेना की राजनीति का केंद्र कट्टर हिंदुत्व है। पर सरकार बनाने के लिए अब दोनों साथ हैं। ये ऐसे सवाल गंभीर सवाल हैं जिनका आने वाले वक्त में सत्ता में रहने वालों और विपक्ष में बैठने को जवाब देना होगा।
महाराष्ट्र मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया है, वह राज्यपाल के विवेक और भूमिका पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है। इस पूरे घटनाक्रम में महाराष्ट्र के राज्यपाल ने भाजपा की सरकार बनवाने के लिए जिस तरह से काम किया, उस पर भी सवाल हैं। आज देश भर में यह पूछा जा रहा है कि आखिर ऐसी क्या मजबूरी आ गई थी कि राज्यपाल ने रात भर में ही ताबड़तोड़ सारे फैसले किए और देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री और अजित पवार को उपमुख्यमंत्री पद की शपथ दिलवा दी, जिसकी किसी को भनक तक नहीं लगी। इतना ही नहीं विश्वासमत हासिल करने के लिए तीस नवंबर तक का लंबा वक्त भी दे दिया। महाराष्ट्र की इस राजनीति ने जिस तरह के अविश्वास को जन्म दिया है, उससे क्या मतदाता खुश होंगे!