अब साफ हो गया है कि कश्मीर मसले पर भारत और पाकिस्तान के बीच कोई भी तीसरा पक्ष मध्यस्थता नहीं करेगा। भारत और पाकिस्तान ही आपसी बातचीत से कश्मीर सहित सभी मुद्दों को सुलझाएंगे। इससे एक बात तो यह स्पष्ट हो गई कि कश्मीर में तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को लेकर अब कहीं कोई भ्रम की स्थिति नहीं है। फ्रांस के शहर बिआरित्ज में सोमवार को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच मुलाकात में कश्मीर को लेकर बात हुई और यह साफ हो गया कि अमेरिका कोई मध्यस्थता नहीं करेगा। दरअसल, कश्मीर मसले पर मध्यस्थता को लेकर अमेरिका जिस तरह के बयान देता रहा है, वे भारत को असहज स्थिति में डालने वाले रहे हैं। इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को धक्का पहुंचा है। ऐसे में फ्रांस में ट्रंप और मोदी के बीच जो बात हुई और कश्मीर को लेकर भारत ने जिस तरह से अपना रुख एक बार फिर से स्पष्ट किया है उससे इतना तो तय है कि मध्यस्थता को लेकर अब कोई भी आसानी से ऐसी बयानबाजी नहीं करेगा।
अगर कोई देश या तीसरा पक्ष कश्मीर मसले पर मध्यस्थता के शिगूफे छोड़ता है या इस अति-गंभीर मसले पर हल्के-फुल्के अंदाज में बात करता है तो निश्चित तौर पर भारत के लिए यह कतई स्वीकार्य नहीं होगा। भारत हमेशा से कहता आया है कि कश्मीर उसका अभिन्न हिस्सा है और इस पर वह तीसरे पक्ष को दखल देने की अनुमति नहीं देगा। कश्मीर का मुद्दा भारत और पाकिस्तान के बीच का द्विपक्षीय मुद्दा है और दोनों देश ही संवाद के जरिए इसे सुलझाएंगे। यही संदेश भारत ने सोमवार को फ्रांस में ट्रंप के साथ बातचीत के बाद दिया। दरअसल, मध्यस्थता को लेकर पिछले महीने अमेरिकी राष्ट्रपति ने गैर-जिम्मेदाराना बयान देकर बखेड़ा कर दिया था। ट्रंप ने वाइट हाउस में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के स्वागत के बाद मीडिया से बातचीत में यह कह दिया था कि भारत ने उनसे कश्मीर मसले पर मध्यस्थता करने को कहा है। इसके बाद भारत ने ट्रंप के इस बयान पर कड़ी नाराजगी जताते हुए इसका खंडन किया था और दो-टूक कहा कि कश्मीर को लेकर उसकी नीति में कोई बदलाव नहीं है और भारत के प्रधानमंत्री ने अमेरिकी राष्ट्रपति से ऐसी कोई बात नहीं की।
दक्षिण एशिया में शांति के प्रयासों की आड़ में अमेरिका अपनी चौधराहट बनाए रखना चाहता है। उसके इस रुख की पुष्टि पिछले हफ्ते एक वरिष्ठ अमेरिकी राजनयिक के इस बयान से होती है जिसमें उन्होंने कहा था कि जम्मू-कश्मीर में धारा 370 को निष्क्रिय करने का भारत सरकार का फैसला उसका आंतरिक मामला है लेकिन इस फैसले से भारत के सीमाई इलाकों में जो असर पड़ रहा है वह चिंता की बात है, इसलिए हम दशकों से कह रहे हैं कि भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव वाले मुद्दों पर सीधी बात होनी चाहिए। भारत साफ कह चुका है कि पाकिस्तान से कोई भी बात तब तक नहीं होगी जब तक वह सीमापार आतंकवाद बंद नहीं करता। पुलवामा हमले के बाद तो भारत ने और कड़ा रुख अपनाया है। सवाल तो यह है कि अमेरिका कश्मीर की ताजा स्थिति को लेकर परेशान क्यों है? हकीकत तो यह है कि सीमाई इलाकों में या घाटी में जो तनाव बढ़ रहा है उसके पीछे पाकिस्तान है, यह किसी से छिपा भी नहीं है। अमेरिका को चाहिए कि जो नसीहतें वह भारत को दे रहा है और उससे उम्मीदें कर रहा है, उसके साथ ही पाकिस्तान पर भी तो सीमापार आतंकवाद बंद करके भारत के साथ द्विपक्षीय वार्ता के लिए दबाव बनाए।