भारत के सबसे वांछित अपराधियों में से एक, छोटा राजन का पकड़ा जाना सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों की एक बड़ी कामयाबी है। इंटरपोल के रेड कार्नर नोटिस के आधार पर उसे इंडोनेशिया की पुलिस ने बाली में पकड़ा। छोटा राजन के बाली पहुंचने के बारे में इंडोनेशिया पुलिस को आस्ट्रेलिया ने सूचित किया था। जाहिर है, भारत के हाथ लगी इस कामयाबी का श्रेय आस्ट्रेलिया और इंडोनेशिया को भी जाता है। ढाई दशक पहले देश से भागे राजेंद्र सदाशिव निखल्जे उर्फ छोटा राजन के खिलाफ हत्या, हत्या के प्रयास और जबरन वसूली से लेकर फिल्मी दुनिया की हस्तियों को धमकियां देने और गैर-कानूनी धंधे चलाने तक ढेरों मामले लंबित हैं।

आखिरी सबसे संगीन जुर्म, जिसमें पुलिस को उसकी तलाश रही है, वह अपराध-रिपोर्टर ज्योतिर्मय डे की जून 2011 में हुई हत्या थी। मुंबई पुलिस के मुताबिक डे की हत्या छोटा राजन ने कराई थी। हालांकि भारत और इंडोनेशिया के बीच कोई प्रत्यर्पण संधि फिलहाल नहीं है, उसकी पहल जरूर हो चुकी है, पर उसे अंतिम रूप नहीं दिया जा सका है। फिर भी यह उम्मीद की जा सकती है कि छोटा राजन को भारत लाने में कोई मुश्किल नहीं आएगी। इंडोनेशिया से भारत के दोस्ताना रिश्ते रहे हैं और प्रत्यर्पण की बाबत वहां के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने सकारात्मक संकेत दिए हैं। फिर, औपचारिक रूप से प्रत्यर्पण संधि भले न हो, उसे भारत लाने में इंटरपोल का नोटिस जरूर एक आधार बनेगा। बहरहाल, इस गिरफ्तारी से जहां कई आपराधिक मामलों की जांच और कार्यवाही आगे बढ़ने की उम्मीद जगी है, वहीं कई तरह की अटकलें भी लगाई जा रही हैं।

छोटा राजन एक समय अंडरवर्ल्ड के कुख्यात सरगना दाऊद इब्राहीम का दाहिना हाथ था। कहा जाता है कि 1993 में मुंबई में हुए सिलसिलेवार विस्फोटों के बाद वह दाऊद से अलग हो गया, दोस्ती का रिश्ता दुश्मनी में बदल गया। इन धमाकों को दाऊद ने अंजाम दिया था। एक अनुमान है कि यह गिरफ्तारी काफी पहले हो सकती थी, पर भारतीय सुरक्षा और खुफिया एजेंसियां इसके लिए उत्सुक नहीं थीं, क्योंकि उनकी दिलचस्पी छोटा राजन के जरिए दाऊद गिरोह को खत्म करने में थी। तो क्या उसकी ‘उपयोगिता’ समाप्त हो गई थी और जो उसका इस्तेमाल कर रहे थे उनके लिए वह बोझ बन चुका था?

इंटरपोल ने भारत के अनुरोध पर 1995 में ही उसके खिलाफ रेड कार्नर नोटिस जारी कर रखा था। वह आस्ट्रेलिया में कई बरस से रह रहा था। आस्ट्रेलिया को उसकी भनक इतनी देर से क्यों लगी? एक अनुमान यह भी है कि छोटा राजन की जान को खतरा था, क्योंकि उसका पता दाऊद गिरोह को लग चुका था, इसलिए गिरफ्तारी का रास्ता उसने खुद साफ कर दिया। लेकिन सवाल यह है कि अगर कोई ढील नहीं बरती गई तो छोटा राजन को पहले क्यों नहीं पकड़ा जा सका? अगर खुफिया एजेंसियों को उसके बारे में सचमुच कुछ पता नहीं था, तो फिर कैसे कहा जा सकता है कि वे उसका ‘रणनीतिक’ इस्तेमाल कर रही थीं? ये सारी अटकलें हमेशा अटकलें ही रहेंगी, क्योंकि कोई सरकारी एजेंसी इनमें से किसी भी अनुमान को कभी आधिकारिक रूप से स्वीकार नहीं कर सकती। वैसा करना बहुत-सी आपत्तियों और विवादों को न्योता देना होगा।

लगातार ब्रेकिंग न्‍यूज, अपडेट्स, एनालिसिस, ब्‍लॉग पढ़ने के लिए आप हमारा फेसबुक पेज लाइक करेंगूगल प्लस पर हमसे जुड़ें  और ट्विटर पर भी हमें फॉलो करें