मानवाधिकारों के उल्लंघन के मुद्दे पर अमेरिका को उसी की भाषा में दो टूक जवाब देते हुए भारत ने यह कड़ा संदेश दे दिया है कि इस तरह की बातों से वह डराने-धमकाने की कोशिश न करे। भारत ने साफ कह दिया कि वह भी अमेरिका में हो रहे मानवाधिकारों के उल्लंघन की घटनाओं पर वैसे ही नजर रख रहा है जैसे अमेरिका दूसरे देशों पर रखता है और इस मुद्दे को वह वक्त आने पर उठाने से चूकेगा नहीं। ऐसा संभवत: पहली बार हुआ है जब मानवाधिकारों के मुद्दे पर भारत ने अमेरिका को इतने कठोर शब्दों में चेताया है।
गौरतलब है कि हाल में विदेश और रक्षा मंत्रियों के दोहरे प्रतिनिधिमंडल स्तर की वार्ता के बाद अमेरिकी विदेश मंत्री ने भारत में मानवाधिकारों के हनन का मुद्दा उठाया था। साझा संवाददाता सम्मेलन में अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा कि भारत में सरकार और पुलिस जिस तरह से नागरिकों के मानवाधिकारों का हनन कर रही है, उस पर अमेरिका की नजर है। हालांकि अमेरिका ने ऐसा कोई पहली बार नहीं किया। मानवाधिकारों के नाम पर वह दुनिया के दूसरे देशों को धमकाता रहता है और अपने हितों के लिए उन पर दबाव बनाने के लिए इस मुद्दे को हथियार की तरह इस्तेमाल करता रहता है।
आखिर अमेरिका ने भारत के समक्ष मानवाधिकारों का मुद्दा अभी ही क्यों उठाया? जबकि दोनों देशों के विदेश और रक्षा मंत्रियों के बीच वार्ता संबंधों को और मजबूत बनाने के मकसद से की गई थी। हालांकि दोहरे प्रतिनिधिमंडल स्तर की वार्ता पहले से चल रही है और वार्ता का यह दौर भी उसी कड़ी में था। लेकिन इस वक्त वैश्विक हालात तनाव भरे हैं। रूस को घेरने के लिए वह जिस तरह की कूटनीति में लगा है, उसे देखते हुए तो यही लगता है कि वह इस तरह की धमकियां देकर भारत को अपने खेमे में लाने के लिए दबाव बना रहा है।
रूस-यूक्रेन युद्ध के मसले पर भारत की तटस्थता की नीति से अमेरिका नाराज है। भारत को अपने साथ खड़ा करने के उसके अब तक के सारे कूटनीतिक प्रयास असफल रहे हैं। इसलिए अब उसे लग रहा है कि वह मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामले में भारत को बदनाम करे। यह जगजाहिर है कि भारत ही नहीं, चीन, म्यांमा सहित दूसरे देशों के खिलाफ भी वह ऐसे मुद्दों को इस्तेमाल करता रहता है।
सवाल यह है कि मानवाधिकारों का झंडा उठाए रहने वाले खुद अमेरिका में मानवाधिकारों की हालत कैसी है? क्या अमेरिका में मानवाधिकारों का उल्लंघन नहीं हो रहा? अगर निष्पक्षता से देखा जाए तो मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामले में अमेरिका दुनिया के कई देशों के मुकाबले ज्यादा दागदार निकलेगा। अमेरिका में रह रहे अश्वेत समुदाय को आज भी वहां श्वेत समुदाय पहले जैसी नफरत से ही देखता है। आखिर क्यों पुलिस अश्वेत नागरिकों की सरेआम हत्या कर देती है?
हाल में मिशिगन में पुलिस ने फिर एक अश्वेत को जमीन पर पटक कर उसके सिर में गोली मार दी। अश्वेत समुदाय के प्रति घृणा और हिंसा को लेकर अमेरिका में होते रहे विरोध प्रदर्शन इस तथ्य की तस्दीक करने के लिए काफी हैं कि वहां मानवाधिकारों की असलियत क्या है। सत्ता में कुछ शीर्ष पदों पर अश्वेतों को बैठा कर अमेरिका अपने कृत्यों से बच नहीं सकता। अमेरिका की जेलों के खौफनाक किस्से सामने आते ही रहे हैं। ग्वांतानामो जेल में कैदियों के साथ जो होता रहा, क्या वह मानवाधिकारों का उल्लंघन नहीं था? अमेरिका को इस मुद्दे पर आईना दिखा कर भारत ने जो किया, उचित ही है।