जिगिषा हत्या मामले में स्थानीय अदालत ने दो दोषियों को फांसी और एक को उम्र कैद की सजा सुनाई है। यह फैसला सुनाते हुए अदालत ने कहा कि दोषियों के सुधरने की कोई संभावना नहीं और वे समाज के लिए खतरा हैं। हालांकि इस फैसले पर जिगिषा के माता-पिता ने संतोष जताया है, पर दोषियों में से एक के वकील ने इसे कमजोर बुनियाद पर टिका हुआ करार दिया है। जाहिर है, इसे ऊपरी अदालत में चुनौती दी जाएगी और निचली अदालत की सजा किस हद तक बरकरार रह पाएगी, कहना मुश्किल है। जिस तरह दोषियों ने जिगिषा का अपहरण किया और क्रूर ढंग से परेशान करने के बाद उसकी हत्या कर दी, वह रोंगटे खड़े करने वाला है। इन दोषियों का पिछला रिकार्ड भी बहुत खराब रहा है। इन तीनों पर आठ साल पहले टीवी पत्रकार सौम्या विश्वनाथन की हत्या का भी आरोप है। अदालत ने फैसला सुनाने से पहले सरकार से एक विशेष अधिकारी नियुक्त करने को कहा था। उसने इन तीनों के पिछले रिकार्ड और जेल में आचरण का अध्ययन करने के बाद रिपोर्ट दी कि इनके सुधरने की गुंजाइश बहुत कम है। पिछले सालों में महिलाओं के खिलाफ अपराधों को ध्यान में रखते हुए उनकी सुरक्षा से जुड़े कानूनों को सख्त बनाया गया। कई मामलों में अपराधियों को कड़ी सजाएं सुनाई जा चुकी हैं, फिर भी इस प्रवृत्ति पर लगाम लगाना मुश्किल बना हुआ है। महिलाओं के खिलाफ अपराध लगातार बढ़े हैं। जाहिर है, शातिर अपराधियों में कानून का भय समाप्त हो गया है। जब समाज में इस किस्म के अपराधी हो जाएं, जिनमें सुधरने की कोई गुंजाइश न हो तो फिर इस प्रवृत्ति से निपटने का क्या उपाय होना चाहिए।
पिछले कुछ सालों में दिल्ली और आसपास के इलाकों में ऐसे अनेक मामले सामने आए हैं, जिनमें अपराधियों ने बड़े शातिर ढंग से महिलाओं के खिलाफ अपराध किया। निस्संदेह ऐसे अपराधियों पर नकेल कसने के लिए पुलिस की सतर्कता और कड़े कानूनों के इस्तेमाल की जरूरत है। पिछले कुछ सालों में जिस तरह बेरोजगारी बढ़ी है और युवाओं में आसान तरीके से पैसे कमाने की प्रवृत्ति विकसित हुई है, उससे अपराध पर नकेल कसना मुश्किल होता गया है। खासकर महानगरों के आसपास के इलाकों में शानो-शौकत से जीने के आकर्षण में युवा अधिक गुमराह हो रहे हैं। जिगिषा मामले में जिन दोषियों को सजा सुनाई गई है, वे दिल्ली के बीच बसे गांवों के रहने वाले या फिर बाहरी राज्यों से आकर यहां बस गए हैं। उनमें भी आसान तरीके से पैसा कमाने और शानो-शौकत से जीने की मनोग्रंथि जड़ें जमा चुकी है। इन्हें कानून का भय नहीं। ऐसे अनेक युवा होंगे। जिन्हें कानून का भय न रह गया हो और गलत तरीके से अपनी जरूरतें पूरी करना उचित मानते हों वे किसी अपराधी की फांसी की सजा से भी कितना सबक लेंगे, कहना मुश्किल है। बेशक सरकारी अफसर को तीनों दोषियों में सुधरने की गुंजाइश न दिखी हो, पर इस बात से शायद ही कोई इनकार करे कि ऐसी मनोग्रंथि के शिकार युवाओं को मनोवैज्ञानिक चिकित्सा के जरिए सुधारने का प्रयास किया जाना चाहिए। महिलाओं के खिलाफ अपराध पर नकेल कसने के लिए कड़े कानूनी प्रावधान के साथ-साथ ऐसे उपायों पर भी विचार होना चाहिए, जिनसे विकृत और आपराधिक मानसिकता वाले लोगों में सुधार की गुंजाइश पैदा की जा सके। जिगिषा मामले में आए फैसले से निस्संदेह एक कड़ा संदेश गया है।

