पिछले दिनों इस्तांबुल में हुए आतंकी हमले के सदमे से दुनिया उबर भी न पाई थी कि आतंकवाद ने एक बार फिर दुनिया को स्तब्ध कर दिया। बांग्लादेश की राजधानी ढाका के अति सुरक्षित इलाके गुलशन में शुक्रवार की रात कुछ आतंकियों ने एक रेस्तरां में घुस कर वहां मौजूद लोगों को बंधक बना लिया। बंधकों को छुड़ाने के लिए पुलिस कार्रवाई शुरू होने के बाद आतंकियों की गोलीबारी में दो पुलिस अफसरों की जान चली गई। छह हमलावर मारे गए और एक जिंदा पकड़ लिया गया। इस आतंकी हमले के चलते बीस विदेशी नागरिक मारे गए हैं। इनमें एक भारतीय भी है। जाहिर है, हमले के पीछे इरादा सिर्फ बांग्लादेश को मुसीबत में डालना में नहीं बल्कि दुनिया भर में खौफ पैदा करना भी था।

यह बहुत कुछ नवंबर 2008 में मुंबई में हुए हमले जैसा वाकया है जिसमें आतंकियों ने इसी तरह कई लोगों को बंधक बनाया था। अलबत्ता मुंबई कांड और भी भयावह था जिसमें एक सौ छियासठ लोग मारे गए थे। ढाका में हुए हमले की जिम्मेदारी आइएस ने ली है। यह दावा कितना सही है, जांच का विषय है, क्योंकि बांग्लादेश में यों भी चरमपंथी गुटों की कमी नहीं है और कुछ सालों से उनकी सक्रियता और खूनी फितरत बढ़ती ही गई है। हो सकता है आइएस ने उनसे अपने तार जोड़ लिये हों। बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने कहा कि उनकी सरकार आतंकवाद को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए कृतसंकल्प है। पर अगर सचमुच उनकी सरकार का संकल्प इतना पक्का होता, तो शायद ये दिन न देखने पड़ते। इस घटना से पहले, पिछले तीन साल में बांग्लादेश में कोई चालीस लोग चरमपंथी हिंसा की भेंट चढ़े हैं। मारे गए लोग कौन थे? सेक्युलर मिजाज के ब्लागर, लेखक, प्राध्यापक, और धार्मिक अल्पसंख्यक, जिनमें शिया, अहमदी मुसलिम और सूफी भी शामिल हैं। इन हत्याओं के खिलाफ बांग्लादेश में हर बार जगह-जगह प्रदर्शन हुए। पर वहां की सरकार का रवैया बहुत ही ढुलमुल रहा।

कई मामलों में पुलिस ने कार्रवाई में तथाकथित संतुलन दिखाने के लिए या कट्टरपंथियों को संतुष्ट करने के लिए सेक्युलर समूहों के लोगों पर भी मुकदमे दायर कर दिए, जो कि वास्तव में पीड़ित पक्ष रहे हैं। बांग्लादेश के विपक्ष से क्या उम्मीद की जाए, जो कि कट्टरपंथियों की सरपरस्ती की ही सियासत करता आया है। पाकिस्तान के नियंत्रण से मुक्त होकर बांग्लादेश का उदय एक सेक्युलर राष्ट्र के रूप में हुआ था, जिसकी अगुआई शेख मुजीबुर्रहमान ने की थी। आज उन्हीं की बेटी के हाथों में बांग्लादेश की कमान है, पर बांग्लादेश किधर जा रहा है? एक भयावह गर्त की तरफ, जहां खुद उसके स्थायित्व और शांति के लिए खतरा है। रमजान का महीना मुसलिम समुदाय के लिए सबसे पवित्र महीना माना जाता है। पर ढाका में आतंकी हमला रमजान के आखिरी जुमे के रोज हुआ। इससे पहले इस्तांबुल में, और उससे पहले अफगानिस्तान में आतंकी हमले हुए थे। तब भी रमजान का ही महीना चल रहा था। इससे जाहिर है, आतंकी संगठन मजहब को सिर्फ अपनी गिरोहबंदी और दहशतगर्दी के लिए इस्तेमाल करते हैं, इस्लाम के उसूलों और मुसलिम समुदाय की आस्थाओं से उनका कोई लेना-देना नहीं है। बहरहाल, अवामी लीग सरकार को समझना चाहिए कि पानी सिर के ऊपर से गुजर रहा है। अगर अब भी उसने ढिलाई बरती, तो बाकी दुनिया में तो उसकी विश्वसनीयता गिरेगी ही, बांग्लादेश का भी अकल्पनीय नुकसान होगा।