यह विडंबना है कि बिहार में नीलगायों को मारे जाने का मसला केंद्र सरकार के दो मंत्रियों के बीच टकराव की वजह बन गया। इसे अलग-अलग मंत्रालयों के बीच तालमेल की कमी या फिर कामकाज की शैली और पारदर्शिता के अभाव से उपजी समस्या कहा जा सकता है। लेकिन अगर एक मजबूत मानी जाने वाली सरकार के दो मंत्री सार्वजनिक रूप से इस तरह एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने लगें तो समझा जा सकता है कि अलग-अलग महकमों में आपसी तालमेल के तार कहीं से ढीले हैं।
महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी को पशुओं के अधिकारों के लिए लड़ने वाली शख्सियत के तौर पर जाना जाता रहा है। इसलिए अगर किसी राज्य में व्यापक पैमाने पर किसी खास पशु के मारे जाने में पर्यावरण मंत्रालय की भागीदारी की खबर से उन्हें चिंता हुई तो यह स्वाभाविक है। लेकिन उनके इस बयान से दो पक्षों के बीच एक असहज स्थिति खड़ी हो गई कि पर्यावरण मंत्रालय की जानवरों को मारने की मंशा है। उन्होंने यह भी कहा कि बिहार में नीलगायों को मारना अब तक का सबसे बड़ा संहार है; यह पहली बार हो रहा है और शर्मनाक है। इस तीखी टिप्पणी के बाद स्वाभाविक ही पर्यावरण मंत्रालय की ओर से भी प्रतिक्रिया हुई और प्रकाश जावड़ेकर ने सफाई में कहा कि जानवरों को मारने की इजाजत एक तयशुदा वक्त और इलाके के लिए है; यह जानवरों को रोकने का वैज्ञानिक प्रबंधन है।
हालांकि एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में किसी को भी अपनी राय जाहिर करने का अधिकार है, लेकिन अगर सरकार में जिम्मेदार पदों का निर्वाह करते हुए मंत्रियों के बीच किसी मसले पर विरोधी मत सामने आते हैं और इससे कड़वाहट पैदा होती है तो इससे तालमेल और कामकाज की शैली से संबंधित सवाल खड़े होते हैं। जहां तक इस मसले पर टकराव की वजह का सवाल है, बिहार में कुछ खास इलाकों में फसलों की तबाही की एक बड़ी वजह नीलगायों को माना जा रहा है। नीलगायों के झुंड जिधर भी निकलते थे, उस तरफ फसलों का नष्ट होना तय था। इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि बिहार के अकेले मोकामा टाल क्षेत्र में दस हजार से ज्यादा नीलगाय हैं। इलाके के किसान लंबे समय से नीलगायों की वजह से फसलें नष्ट होने की शिकायत कर रहे थे।
जाहिर है, किसी जानवर की वजह से होने वाला नुकसान हद से ज्यादा हो गया होगा और उसे रोकने के दूसरे उपाय नजर नहीं आए होंगे तभी उन पर काबू पाने के लिए मारने के निर्देश दिए गए होंगे। लेकिन आधुनिक तकनीक और संसाधनों के इस्तेमाल से क्या इस तरह एक साथ इतनी बड़ी तादाद में जानवरों को मारे जाने से बचा नहीं जा सकता था? दूसरी ओर, यह भी सच है कि कुछ खास जानवर किसी इलाके के लिए बड़ी समस्या बन जाते हैं। बिहार में नीलगायों के अलावा हिमाचल प्रदेश में रीसस मकाक प्रजाति के बंदरों का आतंक इस कदर है कि आखिरकार इसे एक साल के लिए हिंसक पशु घोषित कर दिया गया है। यानी इस अवधि में उन बंदरों को मारने की इजाजत होगी। आवारा कुत्तों पर काबू पाने के लिए किए गए उपाय जगजाहिर हैं। इसलिए इस मसले पर किसी तरह का विवाद खड़ा करने के बजाय क्या यह एक बेहतर रास्ता नहीं है कि दोनों मंत्री आपस में बैठक कर कोई हल निकालने के लिए बातचीत करें और व्यावहारिक उपाय निकालें।