गुरुग्राम में एक चार मंजिला मकान गिरने से सात लोगों की दब कर मौत हो गई। इस घटना ने शहरी क्षेत्रों के भीतर आ गए ग्रामीण इलाकों और अवैध कॉलोनियों में भवन निर्माण संबंधी मनमानियों की तरफ ध्यान आकर्षित किया है। गुरुग्राम में गिरा मकान ग्रामीण क्षेत्र में आता था। उसकी चौथी मंजिल पर काम चल रहा था। इस मकान में मुख्यरूप से किराएदार रहते थे। ये सभी मजदूर वर्ग के थे या आसपास की जगहों पर चौकीदारी वगैरह करते थे। बताया जा रहा है कि मकान पुराना था और उसकी बुनियाद ज्यादा वजन उठा सकने लायक नहीं थी, फिर भी मकान मालिक ने उस पर चौथी मंजिल बना ली थी। मकान की बुनियाद बोझ सहन नहीं कर पाई और गिर गई। दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में यह पहली घटना नहीं है, जिसमें मकान गिरने से उसमें रहने वाले दब कर मारे गए। दिल्ली की अवैध कॉलोनियों में अक्सर मकान गिरने से लोगों के मारे जाने की घटनाएं सामने आती हैं। हर बार मकान निर्माण में बरती जाने वाली मनमानियों के खिलाफ कड़े कदम उठाने का दावा किया जाता है, पर अब तक इसका कोई व्यावहारिक नतीजा सामने नहीं आ सका है।
ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन बढ़ने का सबसे अधिक बोझ दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र पर पड़ा है। यहां आबादी और आय के हिसाब से सबके रहने लायक घर बड़ी मुश्किल से उपलब्ध हो पाते हैं। खासकर दिहाड़ी मजदूरी, चौकीदारी, रेहड़ी-पटरी का कारोबार, छोटे कल-कारखानों आदि में काम करने वाले निम्न आयवर्ग के लोगों के लिए सिर छिपाने की जगह कच्ची कॉलोनियों, अवैध कॉलोनियों या फिर शहरी इलाकों के भीतर आ गए ग्रामीण और लाल डोरा क्षेत्रों में बने मकानों में ही मिल पाती है। दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में इस वर्ग के लोगों की तादाद काफी है। इसलिए ग्रामीण क्षेत्रों और अवैध कॉलोनियों में किराए के मकानों का धंधा खूब फलता-फूलता है। छोटे-छोटे भूखंडों पर चार-पांच मंजिला मकान बना कर उनमें छोटे-छोटे कमरे कम किराए पर उठाने का चलन खूब है। निम्न आयवर्ग के कई लोग साझा किराएदारी पर साथ रह लेते हैं। ऐसे मकानों पर चूंकि नगर निगम के नियम-कायदे लागू नहीं होते, इसलिए मकान मालिक इन्हें बनवाते समय नक्शा और उनमें इस्तेमाल होने वाली सामग्री की गुणवत्ता का ध्यान नहीं रखते। इसी का नतीजा है कि कई मकान निर्माण के दौरान ही या फिर कुछ सालों के भीतर धराशायी हो जाते और लोगों की मौत का सबब बनते हैं।
ग्रामीण इलाकों और लाल डोरा क्षेत्रों में बनने वाले भवनों के लिए नक्शा पास कराना और उनके निर्माण संबंधी दूसरी शर्तों का पालन करना अनिवार्य नहीं है। इसलिए गुरुग्राम में जो मकान गिरा उसमें मकान मालिक ने सिर्फ किराए से कमाई का ध्यान रखते हुए मनमाने तरीके से मंजिलें चढ़ाता गया। सवाल है कि हर साल ऐसी घटनाएं सामने आने के बाद भी राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के शहरी निकाय इस समस्या का समाधान निकालने पर ध्यान क्यों नहीं देते। जगजाहिर है कि शहरी क्षेत्रों में आ गए गांवों में किराए पर रहने वाले लोगों की संख्या बहुत अधिक है, फिर उन्हें भवन निर्माण संबंधी नियमों में छूट क्यों मिलनी चाहिए। जब ये गांव शहरी सुविधाओं का लाभ उठा रहे हैं, तो उन पर लागू होने वाले नियम-कायदों में बदलाव के बारे में क्यों नहीं सोचा जाना चाहिए। आखिर इस तरह लोगों की जान के साथ खिलवाड़ क्यों होने देना चाहिए।