असम में एनआरसी यानी राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर की सूची जारी होने के बाद जो सवाल खड़े हुए हैं, उनके जवाब के एक निष्कर्ष तक पहुंचने में शायद अभी थोड़ा वक्त लगे। लेकिन इस बीच इसकी जद में आए लोगों के सामने जिस तरह की मुश्किलें खड़ी हुई हैं, उनका हल कानूनी और मानवीय, दोनों लिहाज से तुरंत जरूरी है। हालांकि असम में आ गए विदेशी लोगों के मसले पर जद्दोजहद नया नहीं है और उस पर अमूमन सभी पार्टियां अपनी-अपनी सुविधा के मुताबिक राजनीति करती रही हैं। मगर विदेशी होने की आशंका या आरोप में जिन लोगों को हिरासत में लिया गया, उनके बारे में किसी फैसले तक नहीं पहुंच पाना एक अलग और जटिल समस्या खड़ी कर रहा है। हालत यह है कि पिछले कई सालों के दौरान कितने विदेशी नागरिकों को हिरासत में लिया गया, उनसे जुड़ी बाकी जानकारियों की क्या स्थिति है, इसका कोई ठोस ब्योरा तक जमा कर पाने में सरकारी तंत्र लापरवाह रहा है। यही वजह है कि सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने असम में फिलहाल चल रहे हिरासत केंद्रों और पिछले दस साल के दौरान वहां हिरासत में लिए गए विदेशी नागरिकों की कुल संख्या सहित उनसे जुड़ी सभी जानकारियां मुहैया कराने का निर्देश दिया है।
दरअसल, असम के हिरासत केंद्रों में लंबे समय तक पकड़ कर रखे गए विदेशी नागरिकों की स्थिति को लेकर दायर एक याचिका में कहा गया है कि असम के हिरासत केंद्रों में कैद कर रखे गए विदेशी नागरिकों की स्थिति अच्छी नहीं है। इस पर शीर्ष अदालत ने केंद्र से हिरासत केंद्रों, वहां कैदियों के बंद रहने की अवधि और विदेशी नागरिक अधिकरण के समक्ष दायर उनके मामलों की स्थिति को लेकर विभिन्न ब्योरे मांगे हैं। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने साफ लहजे में कहा कि अगर कैदियों को किसी अन्य देश की ओर से स्वीकार नहीं किया जाता है तो उन्हें हिरासत केंद्रों में नहीं रखा जा सकता। यह सवाल स्वाभाविक है कि अगर सरकार ने विदेशी होने या अवैध रूप से भारत में प्रवेश करने के आरोप में बड़ी तादाद में लोगों को हिरासत केंद्रों में रखा है, तो उनकी पहचान स्थापित करके कितने लोगों को उनके देश वापस भेजा गया या फिर यहां उन्हें किस आधार पर इतने लंबे समय से हिरासत में रखा जा रहा है। अगर कई ऐसे विदेशियों को सजा काटने के बाद भी हिरासत में रखा गया है, तो इसे किस आधार पर न्यायोचित ठहराया जा सकता है!
जाहिर है, ये सारे सवाल हाल के महीनों में असम में नागरिकता के मसले पर उठे विवाद और इससे जुड़े दूसरे मुद्दों का ही विस्तार हैं। गौरतलब है कि अवैध प्रवासियों की पहचान करने के लिए गठित विशेष न्यायाधिकरण के आदेश के बाद ऐसे करीब नौ सौ लोग विदेशी ठहराए जाने के बाद हिरासत में हैं। दूसरी ओर, एनआरसी में कुछ ऐसे मामले भी सामने आए जिनमें एक ही परिवार के कुछ सदस्यों को विदेशी घोषित कर दिया गया तो कुछ लोगों को यहां का नागरिक माना गया। इसके मद्देनजर सितंबर में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हिरासत में लिए गए लोगों को उनके परिवारों से अलग नहीं रखा जा सकता। यह ध्यान रखने की जररूत है कि पहले एनआरसी की सूची जारी होने और अब हाल में नागरिकता संशोधन विधेयक के प्रावधानों पर कई सवाल उठ रहे हैं। खासतौर पर पूर्वोत्तर के राज्यों में विरोध का जो चिंताजनक स्वरूप उभरा है, उसके मद्देनजर सरकार ने इस समस्या के व्यावहारिक हल के लिए अगर जल्दी पहलकदमी नहीं की तो बाद में इसे संभालने में शायद ज्यादा मशक्कत करनी पड़े।