इस समय भारत की विदेश नीति एक बहुत ही अहम मुकाम पर है; उसकी दो कूटनीतिक महत्त्वाकांक्षाओं पर फैसला होना है। एक है, शंघाई सहयोग संगठन की पूर्ण सदस्यता, जिसके बारे में ताशकंद में होने वाले शिखर सम्मेलन में निर्णय होना है। इस समूह में चीन, रूस और मध्य एशिया के तमाम देश शामिल हैं। आसार हैं कि भारत को इस महत्त्वपूर्ण एशियाई मंच की पूर्ण सदस्यता मिल जाएगी। अलबत्ता चीन के एतराज के चलते एनएसजी की राह जरूर कठिन दिखती है। हालांकि चीन ने अपने रुख में कुछ नरमी लाते हुए कहा है कि वह किसी के खिलाफ नहीं है, दरवाजे खुले हुए हैं; पर उसकाबुनियादी रुख अब भी वही है जो पहले पहले था, यानी एनएसजी (न्यूक्लीयर सप्लायर्स ग्रुप) की सदस्यता किसी ऐसे देश को नहीं दी जानी चाहिए जिसने एनपीटी यानी परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर न किए हों।
गौरतलब है कि भारत उन थोड़े-से देशों में शामिल है जो इस संधि में शामिल नहीं हैं। लेकिन चीन की आपत्ति के बावजूद भारत ने एनएसजी की सदस्यता के लिए आवेदन कर दिया है जिस पर दक्षिण कोरिया की राजधानी सोल में होने वाली एनएसजी की बैठक में फैसला होना है। अपना पक्ष मजबूत करने के लिए भारत ने कोई कसर नहीं छोड़ी है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई देशों को अपने एतराज वापस लेने के लिए वहां के राष्ट्राध्यक्षों से बात की, वहीं विदेशमंत्री सुषमा स्वराज ने भी इस मामले में कोई दो दर्जन देशों के विदेशमंत्रियों को भारत का पक्ष समझाया। एनएसजी के मामले में भारत की कूटनीतिक कठिनाइयां समझी जा सकती हैं। अमेरिका जरूर खुल कर भारत की तरफदारी कर रहा है, पर भारत को रूस का भी सक्रिय समर्थन हासिल करना है, जबकि रूस और पश्चिमी खेमे के संबंध इन दिनों अच्छे नहीं चल रहे हैं। फिर, अमेरिका व रूस का समर्थन काफी नहीं होगा, चीन का भी राजी होना जरूरी है, क्योंकि एनएसजी में आम सहमति से फैसला होना है।
भारत का कहना है कि जब फ्रांस की बाबत एनपीटी की शर्त बाधा नहीं बनने दी गई, तो उसी के मामले में ऐसा क्यों? पर चीन की दूसरी दलील है कि अगर एनपीटी पर हस्ताक्षर न करने के बावजूद भारत को एनएसजी में शामिल किया जाएगा, तो पाकिस्तान को भी किया जाना चाहिए। इस तरह यह विवाद एक नाजुक मोड़ पर आ पहुंचा है। कुछ लोगों का खयाल है कि अगर एनएसजी की सदस्यता मिल भी जाती है, तो इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा, क्योंकि एनएसजी ने 2008 से ही भारत को परमाणु र्इंधन और तकनीक के आयात की छूट दे रखी है। पर जैसा कि विदेशमंत्री सुषमा स्वराज ने कहा है, कमरे के बाहर बैठने और कमरे के भीतर बैठ कर निर्णय-प्रक्रिया में शामिल होने में काफी फर्क है। एनएसजी परमाणु प्रौद्योगिकी के वैश्विक कारोबार का नियमन करता है।
अगर भारत को एनएसजी की सदस्यता मिल जाती है तो वह भी इस नियमन व्यवस्था में साझीदार हो जाएगा। इस महीने के शुरू में भारत को ‘मिसाइल कंट्रोल टेक्नोलॉजी रिजीम’ की सदस्यता हासिल हुई। अब उसका अगला निशाना एनएसजी है। अगर सोल में होने वाली बैठक में भारत का आवेदन खारिज हो जाता है, तब भी उसकी मुहिम बंद नहीं होगी। अगर आवेदन स्वीकार कर लिया जाता है, तो शायद भारत का अगला बड़ा कूटनीतिक लक्ष्य संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की सदस्यता हासिल करना होगा।