पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने नेताजी सुभाषचंद्र बोस से जुड़ी चौंसठ सरकारी फाइलें सार्वजनिक करके सही किया है। इन्हें आम जानकारी में लाने की मांग लंबे समय से नेताजी के परिजन तो कर ही रहे थे, अनेक इतिहासकारों और बुद्धिजीवियों का भी यही आग्रह रहा कि इन फाइलों को गोपनीय बनाए रखने का अब कोई अर्थ नहीं है। चूंकि सुभाष चंद्र बोस आजादी की लड़ाई के एक बड़े नेता थे और जन-मानस में उनकी छवि एक महानायक की रही है, इसलिए उनसे संबद्ध फाइलों को गोपनीय न रहने देने की मांग केवल अकादमिक या बौद्धिक बहस का विषय नहीं रही, वह जन-आकांक्षा भी बनती गई। इसलिए तृणमूल सरकार के ताजा कदम का स्वाभाविक ही चौतरफा स्वागत हुआ है। नेताजी के बारे में कई बातें अज्ञात या अनसुलझी रही हैं। यह बात बहुत जगह लिखी हुई मिलेगी कि 1945 में हुई एक विमान दुर्घटना ने नेताजी को हमसे छीन लिया।
मगर इस पर हमेशा शक बना रहा। यह उम्मीद की जाती रही कि अगर केंद्र और पश्चिम बंगाल सरकार के नियंत्रण में रखी गोपनीय फाइलें सार्वजनिक कर दी जाएंगी तो नेताजी की मौत को लेकर चले आ रहे रहस्य पर से परदा उठ जाएगा। राज्य सरकार की फाइलों का निष्कर्ष यह है कि नेताजी का निधन 1945 की कथित विमान दुर्घटना में नहीं हुआ था। पर यह कोई नया खुलासा नहीं है। नेताजी की मौत की गुत्थी सुलझाने के लिए तीन आयोग गठित हुए थे। इनमें से कोलकाता हाइकोर्ट के निर्देश पर गठित मुखर्जी आयोग ने भी 1945 में विमान दुर्घटना में नेताजी की मौत होने की चली आ रही कहानी को झुठलाया था। पर इससे आगे का सच न कोई आयोग जान पाया न इन फाइलों में है।
क्या केंद्र के नियंत्रण वाली फाइलों से ज्यादा कुछ पता चलेगा? बहुत-से लोगों का खयाल है, चूंकि केंद्र के पास ज्यादा फाइलें हैं, उनसे ज्यादा तथा अधिक महत्त्वपूर्ण जानकारी सामने आएगी। पर फिलहाल यह एक अनुमान है। ममता बनर्जी के ताजा फैसले ने मोदी सरकार को बचाव की मुद्रा में ला दिया है। भाजपा ने इस मामले में कांग्रेस को घेरने में कभी कसर नहीं रखी। यही नहीं, पिछले लोकसभा चुनाव में उसने वादा भी कर दिया कि उसे केंद्र की सत्ता में आने का मौका मिला, तो वह नेताजी से जुड़ी फाइलें सार्वजनिक कर देगी। प्रधानमंत्री मोदी नेताजी के परिजनों से भी यह वादा कर चुके हैं।
लेकिन अब उनकी सरकार वही कह रही है, जो कांग्रेस की सरकारें कहती थीं, कि संबंधित फाइलें सार्वजनिक कर दी जाएंगी तो कुछ देशों से हमारे संबंध बिगड़ सकते हैं। फिर भाजपा ने इन्हें सार्वजनिक करने का वादा क्यों किया था? जब कांग्रेस या यूपीए की सरकार यही दलील देती थी, तो भाजपा उसका मखौल उड़ाती थी। विचित्र है कि अब वही भाजपा ममता बनर्जी को यह नसीहत दे रही है कि वे इस मामले में राजनीति न करें। राज्य के अगले विधानसभा चुनाव से एक साल पहले फाइलें सार्वजनिक करने के पीछे ममता बनर्जी का सियासी दांव हो सकता है। पर भाजपा तो इस मामले में वादाखिलाफी के कठघरे में खड़ी दिख रही है।
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