मगर रोहतक के एक अखाड़े में जिस तरह एक व्यक्ति ने गोली मार कर पांच लोगों की हत्या कर दी और उसमें एक बच्चे सहित तीन लोग घायल हो गए, उससे समाज में पनपती हिंसा की प्रवृत्ति को लेकर भी चिंता स्वाभाविक है। गौरतलब है कि रोहतक के एक अखाड़े में एक व्यक्ति घुसा और उसने वहां उपस्थिति लोगों पर ताबड़तोड़ गोलियां दाग दीं।

इस घटना के पीछे वजह अखाड़े पर दावेदारी और आपसी रंजिश बताई जा रही है। गोली चलाने वाला व्यक्ति भी पहलवान बताया जा रहा है। हालांकि पुलिस फिलहाल मामले की जांच कर रही है। संपत्ति के विवाद या संस्थाओं पर काबिज होने को लेकर रंजिश में ऐसा खूनी संघर्ष कोई नया मामला नहीं है।

मगर हरियाणा में अपसी विवादों को सुलझाने में अब भी स्थानीय और जातीय पंचायतें बहुत प्रभावी साबित होती हैं। प्रेमी जोड़ों के मामले में तो खाप पंचायतें तत्काल एकजुट होकर अपना फैसला सुना देती हैं, मगर यह समझ से परे है कि एक अखाड़े पर दावेदारी को लेकर चल रही रंजिश को उन्हें हस्तक्षेप करके सुलझाना आवश्यक क्यों नहीं जान पड़ा।

हालांकि हरियाणा में जिस तरह आपराधिक घटनाओं पर काबू पाने में सरकार लगातार विफल साबित होती रही है, उससे भी आपराधिक वृत्ति को बढ़ावा मिला है। जिस समाज में लोगों में कानून और पुलिस का भय समाप्त हो जाता है, वहां लोग मामूली विवाद में भी खुद फैसला करने लगते हैं। यह छिपी बात नहीं है कि दिल्ली से सटे हरियाणा के इलाकों में अवासीय कॉलोनियों का कारोबार फैलते जाने से वहां के लोगों को उनकी जमीनों के मुआवजे के रूप में काफी पैसा मिला है।

उससे बहुत सारे लोगों ने आलीसान मकान, बड़ी गाड़ियां और शानो-शौकत की जिंदगी जीने के सामान जुटा लिए। मगर जमीनें और पारंपरिक धंधे खत्म हो जाने से बहुत सारे युवाओं के सामने कमाई का कोई मुस्तकिल जरिया नहीं रहा। इसके चलते वे अपराध की दुनिया में विचरते देखे जाने लगे।

अपने मामूली स्वार्थ के लिए भी गोली मार कर किसी की हत्या कर देना उनके लिए खेल-सा हो गया है। इस प्रवृत्ति पर काबू पाना अखिरकार सरकार की जिम्मेदारी है। मगर जब वह ऐसा नहीं कर पाती, तो आपराधिक वृत्ति के लोग और बेखौफ होकर खुलेआम अपराध करना शुरू कर देते हैं। फिर वे दूसरों के लिए भी प्रेरणा का काम करते हैं।

रोहतक की घटना में एक सवाल और समझ से परे है कि दोनों में से किसी भी पक्ष को यह जरूरी क्यों नहीं जान पड़ा कि वह संबंधित विवाद के बारे में पुलिस को सूचित करे या फिर पंचायत बिठा कर आपसी बातचीत के जरिए उसका हल निकालने का प्रयास करे। एक वजह तो यह हो सकती है कि उन्हें पुलिस और कानून पर भरोसा नहीं रहा होगा।

दूसरे, यह कि दोनों का अहं इस कदर ऊंचा रहा होगा कि उन्होंने इस मसले को अपनी मूंछ का सवाल बना लिया होगा। विचित्र है कि सूचनाओं के तेजी से पसरते संजाल और ज्ञान-विज्ञान के विस्तार का एक पहलू यह भी है कि लोगों में सहनशीलता और विवेक क्षरित होता जा रहा है। बहुत सारे लोग अब भी मध्यकालीन मानसिकता से बाहर नहीं निकल पाए हैं और वे अपने से असहमति या विपरीत विचार रखने वालों की हत्या करके ही संतोष पाते हैं। इस माहौल के लिए हमारा समाज और प्रशासन दोनों जिम्मेदार कहे जा सकते हैं।