भारतीय अर्थव्यवस्था की दशा को लेकर रिजर्व बैंक ने जो तस्वीर पेश की है, वह चिंताजनक है। केंद्रीय बैंक यह बता पाने की स्थिति में भी नहीं है कि हालात सामान्य कब तक होंगे। रिजर्व बैंक ने अपनी सालाना रिपोर्ट में साफ कहा है कि अर्थव्यवस्था पर दूसरी लहर का असर लंबे समय तक बना रहेगा। यानी पिछले सवा साल में महामारी की मार से पैदा हालात भी रिजर्व बैंक की आशंकाओं की पुष्टि कर रहे हैं। जाहिर है, देश अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर अनिश्चितता के भंवर में है। इससे बाहर आना कम बड़ी चुनौती नहीं है। रिजर्व बैंक ने भी इस बात को माना है।

देशी-विदेशी रेटिंग एजेंसियों, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक तक ने भारत को लेकर आर्थिक वृद्धि के अपने अनुमान कम कर दिए हैं। यह अलग बात है कि सरकार लगातार दावे कर रही है कि अर्थव्यवस्था की बुनियाद मजबूत है। कहती रही है कि संकट तात्कालिक हैं और जल्दी ही भारत अच्छी वृद्धि दर हासिल करने की स्थिति में आ जाएगा। पर बड़ा सवाल है कि यह होगा कैसे? पिछले चौदह महीनों में देश दूसरी बार पूर्णबंदी जैसे हालात झेल रहा है। बीते साल की पहली तिमाही में बंदी के कारण ही सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी दर शून्य से चौबीस फीसद नीचे आ गई थी। इस बार दूसरी लहर से निपटने के लिए राज्यों ने अपने-अपने हिसाब से बंदी और सख्त प्रतिबंध जैसे कदम उठाए। ज्यादातर राज्यों में सात हफ्ते से काम-धंधे बंद पड़े हैं। ऐसे में इस साल भी अर्थव्यवस्था की हालत क्या रहेगी, इसका अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। पिछले साल छोटे और मझौले उद्योगों के साथ बिजली, सीमेंट, कोयला, खनन, उर्वरक, तेल और प्राकृतिक गैस व विनिर्माण जैसे प्रमुख क्षेत्रों का बाजा बज गया था। लेकिन इस बार दूसरी लहर के कारण छोटे और मझौले उद्योग (एमएसएमई) क्षेत्र पर फिर से भारी मार पड़ी।

गौरतलब है कि देश में छह करोड़ पैंतीस लाख एमएसएमई हैं। विनिर्माण उत्पादन में इनका हिस्सा पैंतालीस फीसद है। करीब बारह करोड़ लोगों का रोजगार इनसे जुड़ा है। ज्यादातर उद्योग पिछले साल की मार से ही नहीं उबर पाए हैं। हालांकि रिजर्व बैंक इन उद्योगों को बिना किसी अड़चन के कर्ज मुहैया कराने के लिए व्यावसायिक बैंकों पर लंबे समय से दबाव बना रहा है, कई रियायतों की घोषणाएं भी की हैं। लेकिन ये सब फलीभूत नहीं हो पा रही हैं। इसमें संदेह नहीं कि जब तक बाजारों से बंदी का दुश्चक्र खत्म नहीं होगा, तब तक उद्योग पूरी ताकत के साथ चालू नहीं हो पाएंगे।

अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए बेशक रिजर्व बैंक की कोशिशों में कमी नहीं है। केंद्रीय बैंक इस हकीकत से अनजान नहीं है कि जब तक मांग नहीं निकलेगी, खपत नहीं बढ़ेगी और निवेश नहीं होगा, तब तक अर्थव्यवस्था की गाड़ी पटरी पर ला पाना मुमकिन नहीं है। पर वह यह भी समझ रहा है कि ये तीनों ही काम आसान नहीं हैं। करोड़ों लोग रोजगारविहीन हैं। सरकारी कर्मचारियों और संगठित क्षेत्र में काम करने वालों को छोड़ दें, तो देश की बड़ी आबादी के पास नियमित आय का कोई जरिया नहीं है। ऐसे में बड़ा सवाल है कि जब लोगों के पास काम ही नहीं होगा तो क्या कमाएंगे और क्या खर्च करेंगे? कैसे मांग, उत्पादन और खपत का चक्र चलेगा? रिजर्व बैंक ने टीकाकरण पर जोर इसीलिए दिया है कि महामारी से जल्द छुटकारा मिले और हालात सामान्य हों। लेकिन भारत में टीकाकरण की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। यह सही है कि जान है तो जहान है। लेकिन अब दोनों को समान रूप से बचाने की चुनौती है।