लगातार दसवीं बार नीतिगत दरों में कोई बदलाव नहीं करके रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने साफ कर दिया है कि उसकी प्राथमिकता विकास को रफ्तार देना है। एमपीसी का यह कदम चौंकाने वाला इसलिए है कि इस बार बाजार से लेकर उद्योग जगत तक नीतिगत दरों में बढ़ोतरी की उम्मीद लगाए बैठा था। फिर, पिछले कुछ समय से रिजर्व बैंक भी इस तरह के संकेत देता रहा है कि अब अर्थव्यवस्था संकट से उबरने लगी है और हालात सामान्य होने की ओर हैं, ऐसे में नीतिगत दरों को लंबे समय तक न्यूनतम स्तर पर बनाए रखना न संभव है, न उचित।

पर इस बार भी रेपो और रिवर्स रेपो दर में कोई बदलाव नहीं किया जाना इस बात का स्पष्ट का संकेत है कि अर्थव्यवस्था अभी भी अनिश्चितता के माहौल से निकल नहीं पाई है। महामारी का खतरा टला नहीं है। आर्थिकी में तेजी की जो उम्मीद की जा रही थी, वह देखने को नहीं मिल नहीं रही। इसलिए 2022-23 के प्रस्तावित बजट में भी सरकार का जोर उन उपायों पर ही रहा है, जिनसे बुनियादी क्षेत्र में तेजी आ जा सके और रोजगार के मौके बन सकें। जाहिर है, ऐसे में रिजर्व बैंक नीतिगत दरें बढ़ा कर जोखिम मोल लेने की स्थिति में था नहीं।

नीतिगत दरों में बदलाव नहीं करने के पीछे बड़ा मकसद तो यही है कि वाणिज्यिक बैंक दरें न बढ़ाएं और कर्ज सस्ता बना रहे। सरकार का जोर तो पहले से ही है कि बैंक कर्ज देने में उदार बनें, ताकि आर्थिक गतिविधियों में तेजी आए। अब होगा यह कि बैंक ब्याज दरें नहीं बढ़ा पाएंगे। कर्ज पहले की तरह ही सस्ता रहेगा। लेकिन समस्या तो यह है कि जो लोग या उद्योग अब तक कर्ज लेने से बचते रहे, वे अब इसे प्राथमिकता क्यों देंगे? हालांकि जिसको जरूरत है, वह तो कर्ज लेने को मजबूर है ही।

इसलिए रिजर्व बैंक का यह मानना कि नीतिगत दरें नहीं बढ़ाने से कर्ज सस्ता बना रहेगा और इससे आर्थिक गतिविधियों में तेजी लाने में मदद मिलेगी, व्यावहारिक लगता नहीं है। बैंकों के ब्याज दरें नहीं बढ़ाने से ज्यादातर लोग और निवेशक शेयर बाजार की ओर रुख कर गए हैं। ऐसी आबादी भी कम नहीं है जो अपना पैसा सावधि जमा के रूप में बैंकों में रखती आई है। लंबे समय से ब्याज दरें कम होने की वजह से ऐसे लोगों की आमद को भारी धक्का लगा है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि अर्थव्यवस्था के समक्ष जोखिम बरकरार है। सबसे बड़ा संकट निजी निवेश का रफ्तार नहीं पकड़ पाना है। निजी खपत भी नहीं बढ़ रही। इसका बड़ा कारण पिछले दो साल में लोगों की आमद में आई भारी गिरावट रहा। आइटी जैसे कुछ क्षेत्रों को छोड़ कर ज्यादातर क्षेत्रों में रोजगार की स्थिति गंभीर है। जाहिर है, लोगों के पास खर्च करने के लिए पैसा नहीं है।

सेवा क्षेत्र की हालत में सुधार नहीं होना संकट को बता रहा है। मौद्रिक नीति समिति ने अगले वर्ष के लिए जीडीपी वृद्धि दर 7.8 फीसद रहने का अनुमान लगाया है। चालू वित्त वर्ष के लिए अनुमान साढ़े नौ फीसद से घटा कर 9.2 कर दिया है। रिजर्व बैंक भी जान रहा है कि मौजूदा हालात में बाजार में तेजी लाना आसान नहीं है। फिर महंगाई आग में घी का काम कर रही है। हाल-फिलहाल इससे निजात मिलने के कोई आसार नहीं हैं। ऐसे में रिजर्व बैंक के पास समायोजन का रुख अपनाने के सिवाय चारा और रह भी क्या जाता है!