राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के ताजा आंकड़ों के अनुसार पिछले सात सालों में देश की विभिन्न जेलों में बंद कैदियों की संख्या में तीस फीसद की वृद्धि हुई है। विचाराधीन कैदियों की संख्या सबसे अधिक उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्यप्रदेश में है। यह हमारी न्याय व्यवस्था पर गहरा प्रश्न चिह्न है। विचाराधीन कैदी यानी ऐसे लोग जिन्हें किसी जुर्म के आरोप में जेल में डाल दिया गया है और वे न्याय की आस लगाए बैठे हैं।

विचाराधीन कैदियों में एक बड़ी संख्या ऐसे लोगों की होती है, जो मामूली अपराध के चलते जेलों में डाल दिए जाते हैं और फिर फैसले के इंतजार में वर्षों गुजार देते हैं। ऐसे अनेक मामले हैं, जिनमें बीस-पच्चीस साल तक जेल की सजा काटने के बाद जब अदालत का फैसला आता है, तो लोग निर्दोष बता दिए जाते हैं। कई लोग तो जवानी में जेल भेजे जाते हैं और निकलते हैं तो बुढ़ापे की दहलीज पर होते हैं। इस तरह उनकी पूरी जिंदगी विचाराधीन कैदी के रूप में गुजर जाती है।

इन स्थितियों पर अनेक बार चिंता जताई जा चुकी है और कहा गया कि जिन लोगों पर गंभीर आरोप नहीं हैं, उन्हें बेवजह लंबे समय तक जेलों में बंद करके रखना न्याय संगत नहीं। कई लोग तो विचाराधीन कैदी के रूप में इतना समय गुजार जाते हैं, जितना उन्हें वास्तव में अपराध सिद्ध होने पर भी सजा नहीं दी जाती। इसकी भरपाई उन्हें कभी नहीं मिल पाती।

जेलों में विचाराधीन कैदियों की बढ़ती संख्या की एक बड़ी वजह अदालतों में मुकदमों का अंबार, लंबी-लंबी तारीखें मिलना और न्यायाधीशों की कमी है। देश की सारी अदालतें जरूरत से काफी कम जजों से काम चला रही हैं। इसलिए मामलों की सुनवाई जल्दी नहीं हो पाती और मामले लंबे समय तक लटके रहते हैं। इस तरह विचाराधीन कैदियों को जेलों से बाहर निकलने का रास्ता नहीं मिल पाता। यों भी भारतीय जेलों पर कैदियों का बोझ बहुत अधिक है।

कई जेलों में उनकी क्षमता से तीन गुना अधिक कैदी रखे गए हैं, जिसके चलते न तो उन्हें ठीक से रहने की जगह बन पाती है, न उनके भोजन, स्वास्थ्य आदि का समुचित ध्यान रखा जा पाता है। इस भीड़ के चलते शातिर और खूंखार किस्म के अपराधियों पर नजर रखने में भी मुश्किलें पेश आती हैं। इसलिए जेलों पर से बोझ कम करने के लिए विचाराधीन कैदियों के मामले में कोई उदारवादी तरीका निकालने की सिफारिश की जाती रही है।

हकीकत यह भी है कि जेलों में सजायाफ्ता कैदियों से कहीं अधिक संख्या विचाराधीन कैदियों की है, जो अपने पर लगे अपराध की सिद्धि का इंतजार कर रहे हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने एक बार कहा भी कि इस तरह लंबे समय तक लोगों को विचाराधीन कैदी के रूप में जेलों में बंद रखना उन्हें अपराध के लिए सजा देने से कहीं अधिक यातनादायी हो जाता है।

एक सभ्य और लोकतांत्रिक देश में बिना दोष सिद्धि के लोगों को लंबे समय तक जेल में डाले रखना उचित नहीं। मगर आतंकवाद, राष्ट्रीय सुरक्षा आदि से जुड़े कानूनों में शक के आधार पर भी गिरफ्तारी का प्रावधान होने की वजह से बहुत सारे लोग विचाराधीन कैदी के रूप में जेलों के अंदर हैं। यह ठीक है कि जेलों में दोषियों की संख्या घटी है, पर विचाराधीन कैदियों की संख्या बढ़ना चिंता का विषय है। इस पर गंभीरता से विचार करने और व्यावहारिक उपाय तलाशने की जरूरत है।