जब भी किसी अनियमितता के मामले में किसी बड़े पदाधिकारी या नेता के खिलाफ कार्रवाई होती है, तो भरोसा बनता है कि इससे भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने में मदद मिलेगी। मगर पिछले कुछ वर्षों से भ्रष्टाचार के मामलों में राजनेताओं की गिरफ्तारियों को प्राय: सियासी रंग दे दिया जाता है। पक्ष और विपक्ष के दल परस्पर बंटे नजर आते हैं। जाहिर है, इससे भ्रष्टाचार को लेकर आम लोगों में भ्रम फैलता है और इस तरह इसके खिलाफ कोई भरोसेमंद लड़ाई आगे नहीं बढ़ पाती। आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और तेलुगु देशम पार्टी के प्रमुख चंद्रबाबू नायडू की गिरफ्तारी को लेकर भी ऐसा ही माहौल बन गया है। विपक्षी पार्टियां सत्तारूढ़ दल पर बदले की भावना से काम करने का आरोप लगा रही हैं। तेलुगु देशम पार्टी के कार्यकर्ता इसके विरोध में आंदोलन पर उतर आए हैं।
सीएम रहते बेरोजगार युवाओं में कौशल विकास के लिए एक योजना शुरू की थी
गौरतलब है कि चंद्रबाबू नायडू को कौशल विकास घोटाले के आरोप में वहां की सीआइडी की आर्थिक अपराध शाखा ने गिरफ्तार किया है। आरोप है कि करीब सात साल पहले चंद्रबाबू नायडू ने मुख्यमंत्री रहते बेरोजगार युवाओं में कौशल विकास के लिए एक योजना शुरू की थी, जिसके लिए तीन हजार तीन सौ करोड़ रुपए की परियोजना तैयार की गई। यह काम एक निजी कंपनी को दिया गया, जिसे इसमें पैसे लगाने थे और कुल लागत का केवल दस फीसद राज्य सरकार को खर्च करना था। मगर कंपनी ने पैसे नहीं लगाए और सरकार ने फर्जी कंपनियों को करीब ढाई सौ करोड़ रुपए दे दिए।
पच्चीस लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई
हालांकि करीब दो साल पहले सीबीआइ ने इस मामले की जांच की थी, जिसमें पच्चीस लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई। उसमें चंद्रबाबू नायडू का नाम नहीं था। मगर इस साल मार्च में इस मामले की जांच सीआइडी को सौंप दी गई। उसने अपनी छानबीन में पाया कि इसमें गंभीर अनियमितताएं हुई हैं और उनमें खुद चंद्रबाबू नायडू शामिल हैं। उसने चंद्रबाबू के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर ली। चूंकि सीआइडी राज्य सरकार के अधीन काम करती है, इसलिए विपक्षी दलों के लिए यह आरोप लगाना आसान हो गया है कि उसने राज्य सरकार के इशारे पर यह कार्रवाई की है।
पिछले कुछ समय से चंद्रबाबू नायडू जगनमोहन रेड्डी सरकार के खिलाफ आक्रामक विरोध कर रहे थे, इसलिए यह भी कहा जा रहा है कि इसका बदला लेने की नीयत से राज्य सरकार ने यह कदम उठाया है। इस तरह कौशल विकास घोटाला भी राजनीति की भेंट चढ़ता नजर आने लगा है।
यह पहला मामला नहीं है, जब भ्रष्टाचार के खिलाफ हुई किसी कार्रवाई को सत्तापक्ष की बदले की भावना से की गई कार्रवाई बता कर हकीकत पर परदा डालने का प्रयास किया जा रहा है। दिल्ली में शराब घोटाले, महाराष्ट्र में भूमि खरीद घोटाला, पश्चिम बंगाल में शिक्षक भर्ती घोटाला आदि में हुई राजनेताओं की गिरफ्तारियों और सीबीआइ, प्रवर्तन निदेशालय आदि जांच एजंसियों की अनेक नेताओं से पूछताछ को लेकर भी इसी तरह की सियासी सरगर्मी दिखती रही है।
हालांकि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि सरकारें जांच एजंसियों का अपने सियासी नफे-नुकसान की दृष्टि से दुरुपयोग करती रही हैं। बहुत सारे मामलों में यह स्पष्ट भी है। मगर हर मामले को सियासी कदम कह कर खारिज कर देने से लोगों में भ्रष्टाचार उन्मूलन को लेकर भरोसा कमजोर होता है। जब तक ऐसे मामलों को राजनीतिक चश्मे से देखने की प्रवृत्ति बंद नहीं होगी, तब तक सचमुच भ्रष्टाचार को खत्म करने का मकसद पूरा नहीं होगा।