अब सोने की चमक धीरे-धीरे लौट रही है। कोरोना संक्रमण के चलते पूरी दुनिया में व्यापारिक-वाणिज्यिक गतिविधियां थम गई थीं। उसका असर सोने की खरीद-बिक्री पर भी पड़ा था। पिछले साल सोने की कुल मांग घट कर 94.6 टन हो गई थी। पिछली तिमाही में इसकी मांग सैंतालीस फीसद बढ़ कर 139.1 टन पर पहुंच गई। इसे कोविड पूर्व की मांग के बराबर बताया जा रहा है। विश्व स्वर्ण परिषद ने इसे भारत में आर्थिक गतिविधियों में जबर्दस्त उछाल का संकेत बताया है।

हालांकि इन दिनों शादियों का समय चल रहा है और इस दौरान सोने की खरीद-बिक्री बाकी मौसमों की तुलना में काफी बढ़ जाती है। इसकी एक बड़ी वजह तो यह भी मानी जा सकती है। मगर विश्व स्वर्ण परिषद ने उम्मीद जताई है कि सोने की यह चमक बरकरार रहने वाली है। इससे यह स्पष्ट होता है कि कोरोना महामारी से पैदा अनिश्चितता के चलते लोगों ने अपनी जमा-पूंजी को खर्च करने को लेकर जो हाथ रोक रखे थे, भारी निवेश से हिचक रहे थे, वह हिचक अब दूर हो गई है। यानी बाजार में अब पूंजी का प्रवाह बढ़ने की उम्मीद की जा सकती है।

बाजार में रौनक लौटने की उम्मीद कुछ और वजहों से भी बनी है। कोरोना संक्रमण के बाद वाहनों और भवनों की बिक्री में भी तेजी आई है। कोरोना के पहले ही वाहन उद्योग बुरी स्थिति में पहुंच चुका था। इसके चलते कई बहुराष्ट्रीय मोटर वाहन कंपनियों ने भारत में अपने कारोबार समेट लिए। पर कोरोना की दूसरी लहर के शांत पड़ते ही फिर से वाहन बाजार में तेजी देखी गई। इसी तरह कई सालों से भवन निर्माण के क्षेत्र में कारोबार ठप पड़ा हुआ था। लाखों घर तैयार खड़े थे, पर उनके खरीदार नहीं मिल रहे थे, पर अब इस क्षेत्र में भी तेजी देखी जा रही है।

सोने की खरीद, वाहन और भवनों की खरीद न केवल जरूरत के लिए, बल्कि बहुत सारे लोग निवेश के उद्देश्य भी करते हैं। इन क्षेत्रों में तेजी का अर्थ है कि लोग अब बड़ी पूंजी के निवेश को लेकर मुक्त-हस्त हुए हैं। बाजार का अस्तित्व उपभोक्ता के निवेश पर ही निर्भर रहता है। हालांकि इस वक्त अर्थव्यवस्था की हालत अच्छी नहीं है, लाखों लोगों की नौकरियां और रोजगार छिन गए हैं, इसलिए लोगों की क्रयशक्ति पर बुरा असर पड़ने के आंकड़े आते रहते हैं। इसके बावजूद अगर बड़े निवेश और खरीदारियां हो रही हैं, तो इससे निस्संदेह दूसरे क्षेत्रों को भी बल मिलेगा।

हालांकि सोने की खरीद-बिक्री में कमी या उछाल का सामान्य बाजार पर कोई सीधा असर इसलिए नहीं पड़ता, क्योंकि सोना चाहे जेवर के लिए खरीदा जाए, उपहार के लिए या फिर निवेश के उद्देश्य से, उसका बाजार में प्रवाह उस तरह नहीं होता, जैसे दूसरी चीजों का होता है। सोना उपभोक्ता के पास ही जमा रहता है। इसलिए इससे बेशक उपभोक्ता के निवेश के प्रति उत्साह का पता चलता हो, पर समग्र अर्थव्यवस्था पर इसके दूरगामी असर का दावा करना जल्दबाजी होगी।

आम नागरिकों के सामने फिलहाल रोजगार का संकट है, पेट्रोल-डीजल, खाद्यान्न, खाद्य तेल और सब्जियों आदि की आसमान छूती कीमतों से पार पाने की चुनौती है। महंगाई बाजार की सबसे बड़ी दुश्मन है। जब तक इस पर काबू नहीं पाया जाता, कुछ मुस्तकिल नौकरी-पेशे और बड़ी कमाई वाले लोगों के निवेश के बल पर बाजार को लंबे समय तक टिकाए रखना कठिन ही बना रहेगा।