ब्रिक्स देशों की सालाना बैठक में अफगानिस्तान और आतंकवाद का मुद्दा प्रमुखता से उठा। यह इस बात को रेखांकित करता है कि आतंकवाद और अफगानिस्तान के ताजा घटनाक्रम से सिर्फ भारत ही परेशान नहीं हैं, बल्कि रूस और चीन जैसे देश भी चिंतित हैं। यह चिंता इस अपील में स्पष्ट रूप से झलकी है जिसमें ब्रिक्स देशों (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) ने अफगानिस्तान को आतंकवाद की पनाहगाह बनने से रोकने की अपील की है। बैठक के बाद जारी घोषणापत्र में सबसे ज्यादा जोर आतंकवाद के खिलाफ साझा लड़ाई पर रहा। अगर उपलब्धि के लिहाज से देखें तो बैठक में आतंकवाद के खिलाफ एक रणनीति बनाने पर सहमति बनी और इसके तहत एक कार्ययोजना को हरी झंडी दी गई। यह इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है कि ब्रिक्स देशों में भारत ही आतंकवाद से सबसे ज्यादा प्रभावित देश है।

अफगानिस्तान के घटनाक्रम भी भारत के लिए कम चिंताजनक नहीं हैं। वहां भारतीय मूल के लोगों की सुरक्षा से लेकर तालिबान सरकार के साथ संबंध जैसे जटिल मुद्दों ने भारत के सामने संकट तो खड़ा कर ही दिया है। जहां चीन और रूस ने खुल कर तालिबान सरकार को समर्थन दे दिया है, वहीं भारत अभी तक ‘देखो और इंतजार करो’ की नीति पर चल रहा है। ऐसे में अफगानिस्तान और आतंकवाद जैसे मुद्दों पर ब्रिक्स समूह की घोषणा कितनी कारगर रहेगी, अभी इसका अनुमान नहीं लगाया जा सकता।

गौरतलब है कि भारत लंबे समय से सीमापार आतंकवाद झेल रहा है। यह तो पूरा विश्व जान और देख रहा है कि भारत में आतंकवाद का सबसे बड़ा और एकमात्र कारण पड़ोसी देश पाकिस्तान है। सीमापार आतंकवाद का सिलसिला अभी भी जारी है। पर अब यह संकट इसलिए गहरा गया है क्योंकि अफगानिस्तान में तालिबान सरकार आ गई है। भारत तात्कालिक तौर पर यह अंदेशा जता चुका है कि पाकिस्तान तालिबान लड़ाकों को कश्मीर में भेजेगा और अशांति पैदा करने की कोशिश करेगा।

भारत की यह चिंता रूस और चीन भी समझ तो रहे ही हैं। पर सवाल है कि क्या चीन इस मुद्दे पर भारत का साथ देगा? चीन तो भारत के साथ खुद शत्रुता पूर्ण व्यवहार करता आया है। पाकिस्तान का सबसे बड़ा हमदर्द बना हुआ है। आतंकवाद के मुद्दे पर चीन ने शायद ही कभी पाकिस्तान की निंदा की हो। जाहिर है, ऐसे में आतंकवाद के मुद्दे पर ब्रिक्स देश मिल कर काम कैसे कर पाएंगे! ब्रिक्स के मंच से आतंकवाद के खिलाफ लड़ने का संकल्प अच्छी बात है। लेकिन बड़ी चुनौती इस संकल्प को व्यावहारिक बनाने की है।

अफगानिस्तान अब आतंकवादियों का वैश्विक गढ़ न बन जाए, इसे लेकर सबकी नींद उड़ी हुई है। संयुक्त राष्ट्र भी इस पर चिंता जता चुका है। ऐसे में ब्रिक्स समूह की भूमिका और प्रासंगिकता बढ़ गई है। समूह के दो देश रूस और चीन तालिबान सरकार पर मेहरबान हैं। इन दोनों देशों ने उसे समर्थन से लेकर हर तरह की मदद तक दी है।

गौरतलब है कि अमेरिका ने जिस हक्कानी नेटवर्क मुखिया को वैश्विक आतंकी घोषित कर रखा है, उसे तालिबान ने गृह मंत्री बनाया है। अलकायदा और इस्लामिक स्टेट सहित कई दूसरे आतंकी संगठनों से तालिबान के रिश्ते कौन नहीं जानता! इसलिए चीन और रूस जैसे ब्रिक्स के ताकतवर सदस्य देश आतंकवाद पर लगाम कसने और अफगानिस्तान को आतंकियों की पनाहगाह बनने से रोकने में कितनी और कैसी भूमिका निभाते हैं, यह देखना होगा।