हमारे देश में हर साल किसी बीमारी की वजह से हजारों ऐसे लोगों की मौत हो जाती है, जिन्हें समय रहते चिकित्सीय सुविधाएं मुहैया करा कर बचाया जा सकता था। यह हर साल संक्रमण या किसी वजह से होने वाली बीमारियों के मामले में साबित होता रहा है, लेकिन साल-दर-साल यही स्थिति बनी रहने के बावजूद सरकारों की ओर से ऐसी कोई नियमित व्यवस्था नहीं की जा सकी है, जिससे किसी रोग के फैलने पर उससे निपटने को लेकर आश्वस्त हुआ जा सके। यही वजह है कि कभी डेंगू तो कभी चिकुनगुनिया या फिर इन्सेफलाइटिस जैसे बुखार फैलने और समय पर इलाज न मिल पाने की वजह से बहुत सारे बच्चों की जान चली जाती है। हालांकि कुछ बीमारियां ऐसी हैं, जो लंबे समय से दुनिया के बहुत सारे देशों के लिए चुनौती बनी हुई हैं। ब्रिटेन स्थित गैरसरकारी संगठन ‘सेव द चिल्ड्रन’ की ओर से कराए गए वैश्विक अध्ययन की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक भारत में निमोनिया के कहर से 2030 तक सत्रह लाख से ज्यादा बच्चों के मरने की आशंका है। इसकी चपेट में आकर दुनिया भर में अगले बारह सालों में एक करोड़ से ज्यादा बच्चों की जान जाने की आशंका है। मगर भारत, पाकिस्तान, नाइजीरिया और कांगो सबसे ज्यादा प्रभावित देशों में होंगे।

जाहिर है, यह आंकड़ा किसी भी देश और वहां की सरकारों के लिए व्यापक चिंता का विषय होना चाहिए। लेकिन हमारे देश में इस तरह के सवालों की अनदेखी करना या उनके प्रति अगंभीर बने रहना एक रिवायत-सी हो गई है। विडंबना यह भी है कि अगर किसी बीमारी की चपेट में आकर जान गंवाने वालों की संख्या तेजी से नहीं बढ़ती है तो वह मुख्य चिंता की वजह भी नहीं बन पाती। रिपोर्ट में यह भी दर्ज है कि भारत में अकेले 2016 में निमोनिया और डायरिया के चलते पांच साल से कम उम्र के दो लाख साठ हजार से ज्यादा बच्चों की मृत्यु हो गई। अगर समय रहते टीकाकरण, उपचार और पोषण की दरों में सुधार जैसे ठोस कदम उठाए जाएं, तो मरने वालों में से कम से कम आधे को बचाया जा सकता है। रिपोर्ट में साफ तौर पर भारत सहित पंद्रह देशों को ऐसी स्वास्थ्य प्रणाली सुनिश्चित करने में पिछड़ा घोषित किया गया है, जिसमें अधिक से अधिक प्रभावित बच्चों को समय पर बीमारियों की रोकथाम और उपचार सेवाएं मुहैया हो सकें।

यानी यह एक अफसोसनाक हकीकत है कि हर साल लाखों बच्चे ऐसी बीमारी की वजह से मर जाते हैं, जिससे निपटने के लिए दुनिया के पास ज्ञान और संसाधन हैं। पिछले कुछ दशकों से आमतौर पर हर साल किसी न किसी संक्रामक बीमारी की वजह से बड़ी तादाद में लोग और खासतौर पर बच्चे प्रभावित हुए और बहुतों की जान चली गई। उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में जापानी ज्वर से पीड़ित सैकड़ों बच्चों की मौत से यही साफ हुआ कि एक ओर जहां हमारी स्वास्थ्य सेवाओं में घोर कमी है, दूसरी ओर सरकारों की नींद तब तक नहीं खुलती है, जब तक किसी रोग से बड़ी संख्या में मौतें नहीं होने लगें और वह राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का मुद्दा न बन जाए। सवाल है कि अपने ही नागरिकों के प्रति सरकारों का रवैया इस कदर उपेक्षापूर्ण क्यों रहा है कि आज निमोनिया जैसी बीमारियां भी एक संकट की शक्ल ले रही हैं!