दिल्ली सरकार के एक मंत्री को पद से हटाए जाने की खबर ने दो वजहों से देश का ध्यान खींचा। एक तो इसलिए कि आम आदमी पार्टी भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से निकली है और भ्रष्टाचार मिटाना इसका सबसे खास वादा रहा है। ऐसे में पार्टी की सरकार के एक मंत्री पर रिश्वत मांगने का आरोप चौंकाने वाली बात है। पूरे देश का ध्यान इस तरफ जाने का दूसरा कारण यह रहा कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने, तथ्य सामने आने पर, बिना हीलाहवाली किए आसिम मोहम्मद खान को बर्खास्त कर दिया। जबकि दूसरी पार्टियां अपने दागियों का बचाव करती रहती हैं। लिहाजा, केजरीवाल का यह फैसला आज के राजनीतिक परिदृश्य में एक अपवाद जैसा दिखता है।

आसिम मोहम्मद खान आप सरकार में खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री थे। उन पर आरोप लगा कि उन्होंने एक व्यक्ति से भवन का निर्माण जारी रखने देने के लिए छह लाख रुपए रिश्वत मांगी थी। शिकायतकर्ता ने इसका आॅडियो सबूत भी मुख्यमंत्री को दिया था। इसके बाद भी केजरीवाल अगर खान को मंत्री-पद से न हटाते तो उनकी किरकिरी तय थी। हो सकता है ऑडियो-क्लिप किसी और राजनीतिक पार्टी या किसी चैनल के पास पहुंच जाता, और तब यह सवाल उठता कि सबूत मुहैया कराए जाने पर भी केजरीवाल ने संबंधित मंत्री के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की।

यह सवाल उठने की गुंजाइश पैदा हो, इससे पहले ही केजरीवाल ने खान को हटा दिया, और इस तरह एक मुद्दा विपक्ष के हाथ लगते-लगते रह गया। यही नहीं, केजरीवाल ने भाजपा और कांग्रेस को यह चुनौती भी दे डाली कि ये पार्टियां भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे अपने लोगों को कुर्सी से हटा कर दिखाएं। इसमें दो राय नहीं कि केजरीवाल का यह साहसिक कदम है। उन्होंने खान पर लगे आरोप की जानकारी खुद मीडिया को दी, प्रथम दृष्टया सबूत आते ही तत्काल कार्रवाई की, यह बहाना नहीं किया कि पहले जांच पूरी हो जाने दें।

इसी मौके पर केजरीवाल ने एक बार फिर दोहराया कि उनकी सरकार भ्रष्टाचार को कतई बर्दाश्त न करने की नीति पर चल रही है। अच्छी बात है। पर इसी के साथ कुछ सवाल भी उठते हैं। एक यह कि इस तरह की तत्परता उन्होंने तब क्यों नहीं दिखाई जब जीतेंद्र सिंह तोमर की फर्जी डिग्री का मामला उजागर हुआ था। पार्टी और मुख्यमंत्री, जब तक संभव हुआ, तोमर का बचाव करते रहे। जब यह संभव नहीं रहा, तभी तोमर को पद से हटाया गया। फिर पार्टी ने कहा कि वह धोखा खा गई। घरेलू हिंसा के मामले में फंसे सोमनाथ भारती का भी केजरीवाल बचाव करते रहे, और जब उन्होंने अपना रुख बदला, तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

दूसरा सवाल यह उठता है कि ऐसी पार्टी, जो हर तरह से जांच-परख कर उम्मीदवार तय करने का दावा करती आई है, उसने ऐसे लोगों को कैसे टिकट दे दिया जो शर्मिंदगी का सबब बन गए। पार्टी को दुबारा सत्ता में आए महज आठ महीने हुए हैं, और उसके सात मंत्रियों में से एक को फर्जी डिग्री के कारण और एक को रिश्वत मांगने के कारण हटाना पड़ गया। पार्टी के कई विधायकों के खिलाफ भी गंभीर शिकायतें हैं। खान की बर्खास्तगी के जरिए केजरीवाल ने जो संदेश देना चाहा है वह स्वागत-योग्य है, पर सवाल है कि भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से निकली पार्टी ने खुद को पाक-साफ रखने की जो प्रक्रिया सोची थी उसका क्या हुआ?

फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए क्लिक करें- https://www.facebook.com/Jansatta

ट्विटर पेज पर फॉलो करने के लिए क्लिक करें- https://twitter.com/Jansatta