खालिस्तान समर्थकों ने विदेशी जमीन से फिर सक्रियता दिखानी शुरू कर दी है। भारत के लिए यह गंभीर खतरे का संकेत है। जो संकेत उभर रहे हैं, उनसे यही लग रहा है कि आने वाले वक्त में खालिस्तान की मांग फिर से जोर पकड़ सकती है। इस महीने कुछ घटनाएं ऐसी हुर्इं, जिनसे यह संकेत मिलता है कि खालिस्तान समर्थकों ने अपनी मांग को फिर से हवा देने की कोशिश की है और साथ ही यह संदेश भी दिया है कि अलग राष्ट्र की उनकी मांग का सपना कायम है। ताजा घटना यह है कि अमेरिका के कैलिफोर्निया राज्य के युबा शहर में खालिस्तान समर्थकों ने दिल्ली सिख गुरद्वारा प्रबंधक कमेटी (डीएसजीपीसी) के अध्यक्ष और शिरोमणि अकाली दल के नेता मंजीतसिंह जीके पर जानलेवा हमला कर दिया। चार दिन पहले भी उन पर न्यूयार्क में हमला हुआ था और वह भी खालिस्तान समर्थकों ने ही किया था। हमलावर एक बड़े समूह में थे और खालिस्तान के लिए जनमत संग्रह की मांग कर रहे थे। दूसरी घटना लंदन में हुई जहां कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की सभा में तीन खालिस्तान समर्थक घुस गए और खालिस्तान की मांग को लेकर नारे लगाने लगे। ये दोनों घटनाएं इस बात की ओर इशारा करती हैं कि अलग खालिस्तान की मांग को लेकर अंदर ही अंदर खिचड़ी पक रही है।
इन दिनों सिख फॉर जस्टिस नाम का संगठन अलग खालिस्तान की मांग को लेकर सक्रिय है। भारत के स्वतंत्रता दिवस के आयोजन से दो दिन पहले इस संगठन ने लंदन में एक रैली कर अलग राष्ट्र के लिए 2020 में जनमत संग्रह कराने का एलान किया था। जिन लोगों ने मंजीतसिंह जीके पर हमला किया है, वे भी सिख फॉर जस्टिस से जुड़े लोग हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि सिख फॉर जस्टिस नाम का यह संगठन कई देशों में फैला है और अपनी गतिविधियों को अंजाम दे रहा है। लेकिन सवाल उठता है कि यह संगठन आखिर किसके इशारे पर सक्रिय हुआ है? अभी तक ऐसा देखने में नहीं आया था कि भारत से जाने वाले किसी नेता की सभा में खालिस्तान समर्थक घुसे हों और बाधा डाली हो। क्या यह इस बात का संकेत है कि योजनाबद्ध तरीके से खालिस्तान समर्थक एकजुट हो रहे हैं और भविष्य की रणनीति पर काम कर रहे हैं?
इसमें कोई शक नहीं कि बाहरी मदद और समर्थन से ही ऐसी गतिविधियां सिर उठा रही हैं। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा जैसे देशों में खालिस्तान समर्थकों को मदद दे रही है और उन्हें भारत के खिलाफ इस्तेमाल करने की तैयारी में है। कई साल पहले जर्मनी में पुलिस ने खालिस्तान जिंदाबाद फोर्स के दो संदिग्ध आतंकवादियों को गिरफ्तार किया था। तब जांच में सामने आया था कि यूरोप में खालिस्तान जिंदाबाद फोर्स से जुड़े कई लोग हैं। ब्रिटेन में वामपंथी ग्रीन पार्टी सिख फॉर जस्टिस के साथ खड़ी है और उसने खालिस्तान के लिए जनमत संग्रह-2020 के प्रस्ताव का समर्थन किया है। पिछले कुछ सालों के दौरान यही लग रहा था कि खालिस्तान के नामलेवा शायद अब नहीं बचे हैं। लेकिन हकीकत कुछ और ही बयान कर रही है। यह ध्यान रखने की जरूरत है कि भारत ने लंबे समय पंजाब में आतंकवाद को झेला है और इसकी भारी कीमत चुकाई है। ऐसे में खालिस्तान समर्थकों का फिर से सक्रिय होना बड़े खतरे की घंटी है। अगर विदेशों में खालिस्तान समर्थक फिर सक्रिय हुए तो यह भारत के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकता है।