देश के अपेक्षया संपन्न राज्यों में शुमार और सौ फीसद साक्षरता का लक्ष्य हासिल कर चुका केरल इन दिनों राजनीतिक हिंसा की वजह से सुर्खियों में है। रविवार को त्रिशूर जिले में संघ के एक अट्ठाईस वर्षीय कार्यकर्ता के.आनंदन की कथित रूप से माकपा के कार्यकर्ताओं ने हत्या कर दी। आनंदन अपनी मोटरसाइकिल से कहीं जा रहे थे तभी कार पर सवार हमलावरों ने पहले उनकी मोटरसाइकिल में टक्कर मारी और जब वे गिर पड़े तो उन्हें बेरहमी से मारा-पीटा, जिससे आखिरकार उनकी मौत हो गई। आनंदन के साथ मोटरसाइकिल पर सवार एक और युवक विष्णु को भी चोटें आई हैं, लेकिन वे खतरे से बाहर हैं। घटना के बारे में यह तथ्य उभर कर आया है कि आनंदन, माकपा के एक कार्यकर्ता फासिल की चार साल पहले हुई हत्या में अभियुक्त थे और छह महीने जेल में रहने के बाद जमानत पर छूटे थे। तब दोनों पक्षों में झगड़ा दीवाल-लेखन (वॉल राइटिंग) को लेकर हुआ था। आरोप है कि आनंदन की हत्या को फासिल के भाई फैसल ने अपने दो अन्य साथियों के साथ अंजाम दिया।

इस मामले में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और केरल के प्रदेश अध्यक्ष राजशेखरन ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। जबकि माकपा के त्रिशूर जिला सचिव राधाकृष्णन ने कहा कि इसमें उनकी पार्टी का कोई हाथ नहीं है। हालांकि एक पुलिस प्रवक्ता ने यह भी कहा कि पहली नजर में यह मामला एक भाई द्वारा की गई बदले की कार्रवाई ज्यादा लगती है। केरल सरकार के तमाम इनकार के बावजूद यह हकीकत है कि राज्य में राजनीतिक और वैचारिक आधार पर हत्याएं होती रही हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और माकपा के बीच चलते आ रहे टकराव के जब-तब खूनी शक्ल अख्तियार कर लेने से पिछले दस साल में सौ से अधिक कार्यकर्ता मारे जा चुके हैं। संघ का आरोप है कि सर्वाधिक हत्याएं उसके कार्यकर्ताओं की हुई हैं। इसी साल 29 जुलाई को तिरुवनंतपुरम के नजदीक कल्लामपल्ली में संघ के दलित कार्यकर्ता राजेश की हत्या हुई थी। इसमें भी माकपा पर आरोप लगा था। जबकि माकपा का कहना है कि उसके भी काफी कार्यकर्ता मारे गए हैं।

राजनीतिक हत्याओं के लिहाज से उत्तर केरल के कन्नूर और थलासेरी जिले सबसे ज्यादा संवेदनशील हैं। राजनीतिक हिंसा, जो कि कई बार हत्या की हद तक चली जाती है, को लेकर दोनों तरफ से आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला कुछ महीनों से लगातार जारी है। राजनीतिक विश्लेषक भी मानने लगे हैं कि यह केवल कानून और व्यवस्था का मामला नहीं है। इसके पीछे राजनीतिक नफरत और दूसरे को किसी भी कीमत पर पैर पसारने से रोकने की जिद भी काम कर रही होती है। राज्य सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वह फौरन ऐसी घटनाओं को रोकें। असहमति और विरोध जताने का अधिकार लोकतंत्र की बुनियाद है। अगर किसी राज्य में विपक्षी कार्यकर्ताओं को डराया-धमकाया जाएगा, उन्हेंमारा-पीटा जाएगा, फर्जी मुकदमों में फंसाया जाएगा, और वहां की सरकार निष्क्रिय बनी रहेगी, तो यह हमारे लोकतंत्र का गला घोंटने जैसा होगा। केरल में माकपा और जहां भाजपा की सरकारें हैं वहां भाजपा को ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए जिससे विपक्षी कार्यकर्ता खौफ में रहें।