किसी भी सामुदायिक पर्व-त्योहार का सबसे पहला संदेश यही होता है कि लोग आपसी सद्भाव के साथ उसमें शामिल हों, उससे जुड़ी भावनाओं के साथ खुशी मनाएं। पर पिछले कुछ सालों से धार्मिक आयोजन-उत्सवों में चुपचाप कुछ गुट बन जाते हैं और बहुत मामूली बातों पर भी तनाव, टकराव और कई बार हिंसा की हालत पैदा हो जाती है। कभी इससे दो अलग-अलग धार्मिक समुदायों, तो कभी एक पक्ष के कई गुटों के बीच टकराव पैदा हो जाता है। पंजाब के लुधियाना में दशहरे के मौके पर रावण के पुतले के रंग और कुछ तस्वीरों को लेकर कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल के कार्यकर्ताओं के बीच हुई हिंसा इसी का एक उदाहरण है। विवाद की वजह बस इतनी थी कि कांग्रेस से जुड़े कार्यकर्ताओं ने इस बार रावण दहन के लिए जो पुतला बनाया था, उसका रंग काला न होकर सफेद था, जिसे ‘चिट्टा रावण’ का नाम दिया गया।

कांग्रेस का कहना था कि पंजाब मादक पदार्थों के चलते तबाह हो रहा है और चूंकि हेरोइन का रंग सफेद है, इसलिए रावण के पुतले को सफेद रंग दिया गया। इसके साथ इस कारोबार को बढ़ावा देने वालों के प्रतीक के तौर पर मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और उपमुख्यमंत्री सुखबीर बादल की भी तस्वीर लगा दी गई। शिरोमणि अकाली दल के कार्यकर्ताओं ने अपने नेताओं की तस्वीर रावण के साथ लगाए जाने पर आपत्ति जताई और यह विवाद हिंसक हो गया। इसमें जिस तरह छत्तीस लोग घायल हो गए, उसे किस समझदारी का सबूत माना जाए!

दरअसल, पंजाब में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं। देश के दूसरे इलाकों की तरह वहां भी चुनावी तैयारी में सभी राजनीतिक दलों ने अपने मुद्दों को जनता तक पहुंचाने के लिए दूसरे तरीके आजमाने के साथ-साथ धार्मिक उत्सवों को भी लोगों के बीच अपनी पैठ बनाने का जरिया बना लिया है। पंजाब में मादक पदार्थों के सेवन में डूबे समाज का बड़ा तबका आज देश भर में चिंता की वजह बना है। समाज के इस हाल में पहुंचने के लिए अमूमन सभी राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी कितनी बनती है, यह सब जानते हैं। मगर अपने यहां राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता की स्थिति में एक ही समस्या के लिए दो या उससे ज्यादा पक्ष एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहराते रहते हैं।

इसी क्रम में कांग्रेस ने समाज पर मादक पदार्थों के असर को दर्शाने के लिए रावण के पुतले के साथ कुछ नेताओं की तस्वीरें भी लगार्इं। पर क्या उसके लिए यह जरूरी था कि ऐसे नेताओं की तस्वीर लगा दी जाए, जो उत्सव के माहौल में तल्खी घोल दें? क्या इसे अपने प्रतिद्वंद्वी को चिढ़ाने की कोशिश के तौर पर नहीं देखा जाएगा? दूसरी ओर, पर्व-त्योहारों के दौरान विभिन्न विषयों को लक्षित कर कार्टून या पुतले बनाने की प्रवृत्ति हाल के वर्षों में बढ़ी है। आमतौर पर इसे बुरा नहीं माना जाता है। उसमें अगर मादक पदार्थों से बढ़ती समस्या के लिए राज्य के मुखिया होने के नाते प्रकाश सिंह बादल को जिम्मेदार मान कर उनकी तस्वीर लगा दी गई, तो इसमें इस हद तक आक्रोश से भर जाने की क्या जरूरत थी कि इसके विरोध में इस कदर हिंसक हो जाया जाए। हैरानी की बात है कि दोनों पक्षों में से किसी को यह समझना जरूरी नहीं लगा कि जिस बुराई के प्रतीक रावण के रंग और दूसरी तस्वीरों को लेकर वे आपस में भिड़ रहे हैं, वह किस प्रवृत्ति का सबूत है!