धार्मिक स्थलों से लेकर अन्य किसी जगह पर बड़ी संख्या में लोगों के जमावड़े में होने वाली भगदड़ की घटनाएं जिस तरह लगातार सामने आ रही हैं, उससे पता चलता है कि व्यापक लापरवाही से उपजी मुश्किल अब कितनी जटिल हो चुकी है।

यह एक सख्त टिप्पणी होगी, लेकिन ऐसा लगता है कि सब कुछ जानते-बूझते हुए भी लोगों के बीच भगदड़ होने के हालात की अनदेखी की जाती है और इस तरह हादसा होने दिया जाता है! वरना क्या कारण है कि हर कुछ दिनों बाद किसी मंदिर और धार्मिक या फिर राजनीतिक जमावड़े के दौरान चारों तरफ पसरी अव्यवस्था और आयोजकों की घोर लापरवाही की वजह से लोगों के बीच भगदड़ मचती है और फिर उसमें नाहक ही लोगों की जान चली जाती है।

गौरतलब है कि आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले के कासीबुग्गा में वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर में शनिवार को भगदड़ मचने से कई लोगों की मौत हो गई और पच्चीस से ज्यादा लोग घायल हो गए।

एकादशी के दिन की पूजा होने की वजह से श्रद्धालुओं की संख्या आम दिनों के मुकाबले काफी ज्यादा थी। पहली मंजिल पर स्थित मंदिर में जाने-आने का रास्ता एक ही है, जिस पर धक्का-मुक्की की वजह से पहले रेलिंग टूट गई, फिर भगदड़ मच गई। यानी एक तरह से हादसा होने के हालात पहले ही बन गए थे, मगर मंदिर प्रबंधकों और प्रशासन को उसे संभालने की जरूरत महसूस नहीं हुई।

सवाल है कि इस हद तक लापरवाही बरतने वालों को इस हादसे के लिए कठघरे में खड़ा क्यों नहीं किया जाना चाहिए। एक रस्म की तरह सरकार ने घटना की जांच के आदेश दिए हैं, लेकिन अब यह भरोसा करना मुश्किल होता जा रहा है कि सरकारें किसी हादसे से सबक लेकर हर धार्मिक स्थल, राजनीतिक या अन्य किसी आयोजन में बड़ी संख्या में लोगों का जमावड़ा होने की स्थिति में कुछ नियम-कायदों का पालन सुनिश्चित कराएगी।

इसी वर्ष जनवरी में तिरुपति मंदिर में हुए हादसे के बाद आंध्र प्रदेश सरकार ने कुछ उपायों पर चर्चा की थी, लेकिन वे कभी लागू नहीं हुए। क्या सरकारों और प्रशासन के सामने यह चिंता कोई मायने रखती भी है कि धार्मिक या राजनीतिक कारणों से एक जगह बड़ी संख्या में जमा होने वाले लोगों की सुरक्षा का दायित्व उन पर भी है?

यह भी पढ़ें: संपादकीय: सहयोग के मोर्चे! भारत-अमेरिका रक्षा समझौता कई मायनों में महत्वपूर्ण