जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के खिलाफ अभियान के संदर्भ में सरकार के दावे चाहे जो हों, हकीकत यह है कि वहां आज भी आए दिन आतंकवादियों के हमले हो रहे हैं और उसमें सुरक्षा बलों के जवान और अधिकारी शहीद हो जाते हैं। गौरतलब है कि सोमवार को उधमपुर में आतंकियों ने नियमित गश्ती पर निकली सीआरपीएफ और जम्मू-कश्मीर पुलिस की संयुक्त टुकड़ी पर अंधाधुंध गोलीबारी की, जिसमें एक इंस्पेक्टर की जान चली गई। इससे एक बार फिर यही जाहिर हुआ है कि राज्य में आज भी आतंकवादी संगठनों का दंश देश के सुरक्षा बलों को झेलना पड़ता है।
पिछले हफ्ते चौदह अगस्त को भी सुरक्षा बलों और आतंकियों के बीच मुठभेड़ में सेना का एक अधिकारी शहीद हो गया था। इससे पहले डोडा में मुठभेड़ के दौरान एक कप्तान सहित पांच जवान शहीद हो गए थे। पिछले चार महीने में बीस जवान शहीद हो चुके हैं। जम्मू क्षेत्र आमतौर पर कई वर्षों से कश्मीर की अपेक्षा ज्यादा शांत रहा है। मगर बीते कुछ समय से इसके कुछ इलाकों में भी आतंकी गतिविधियां बढ़ी हैं।
हालांकि पिछले कुछ समय से आतंकी हमलों में तेजी का एक कारण यह भी हो सकता है कि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव की घोषणा हो गई है। लोकसभा चुनावों में मतदान के रुझान से विधानसभा चुनावों में भी लोगों के बढ़-चढ़ कर भाग लेने की उम्मीद बन रही है। अगर राज्य में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूती मिलती और उसमें जन-भागीदारी बढ़ती है, तो यह आतंकवाद में लगे गिरोहों के लिए एक प्रतिकूल स्थिति होगी। इसलिए आए दिन सुरक्षा बलों पर या फिर रोजी-रोटी की उम्मीद में बाहर से वहां गए प्रवासी लोगों पर लक्षित हमले करके जम्मू-कश्मीर में शांति और सहजता की स्थिति को भंग करने की कोशिश की जाती है।
आतंकियों के खिलाफ बने राय
सरकार को आतंकियों के खिलाफ अभियानों की रणनीति तय करते हुए इस पहलू को भी ध्यान में रखना होगा कि स्थानीय लोगों के बीच आतंकवाद के खिलाफ जो राय बन रही है, उसे मजबूत किया जाए, ताकि राज्य में इस समस्या से निपटने में कारगर मदद मिले।