देश के शासन-तंत्र के ढांचे में काम करने वाले सभी अधिकारी और कर्मचारी के लिए उनके दायित्वों के साथ एक महत्त्वपूर्ण संदेश यह भी जुड़ा होता है कि उनके आचरण से समाज में सकारात्मक संदेश जाए। मगर आए दिन ऐसी खबरें मिलती रहती हैं कि किसी अफसर ने अपने मातहत कर्मचारियों को अनधिकृत रूप से अपने निजी काम करने में भी लगा दिया या कुछ ऐसा कराया, जो नियमों के खिलाफ, सामाजिक और नैतिक रूप से गलत था और उससे नौकरशाही को लेकर नकारात्मक संदेश गया।

मध्य प्रदेश में सिंगरौली जिले की चित्रांगी तहसील के उपजिलाधिकारी यानी एसडीएम ने यह बुनियादी पहलू ध्यान रखना जरूरी नहीं समझा और सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान अपने कार्यालय की एक महिला कर्मी से जूते का फीता बंधवाने में उन्हें कोई संकोच नहीं हुआ। इस घटना की तस्वीर के सोशल मीडिया पर सुर्खियों में आने के बाद मामले ने तूल पकड़ लिया और लोगों ने अधिकारी के इस आचरण पर तीखी आपत्ति दर्ज की। स्वाभाविक ही इससे राज्य सरकार के लिए एक असहज स्थिति पैदा हो गई, जो अक्सर महिला सम्मान के सर्वोपरि होने की बात करती रहती है। नतीजतन, सरकार ने ऐसे आचरण के कठघरे में आए एसडीएम के तबादले का आदेश जारी कर दिया।

किसी भी व्यक्ति और खासतौर पर उच्च पद पर काबिज अधिकारी के पास यह सहज ज्ञान होना चाहिए कि सार्वजनिक रूप से ऐसे आचरण का क्या मतलब होता है। मगर संबंधित एसडीएम को इस पर गौर करना जरूरी नहीं लगा कि ऐसी कोई बात कैसे उनके पद की मर्यादा और सामान्य नैतिकता के भी खिलाफ जाती है।

खासतौर पर जिस दौर में महिलाओं के सम्मान और अधिकार के लिए सभी स्तरों पर जोर दिया जा रहा है, वैसे में यह घटना दावों और हकीकत के विरोधाभास को ही दर्शाती है। इसलिए उनके तबादले से संबंधित फैसले का आशय समझा जा सकता है। हालांकि आरोपों के कठघरे में आए एसडीएम ने सफाई के तौर पर कहा कि उनके पैर में चोट लगी थी और इस वजह से महिला कर्मी ने खुद ही जूते के फीते बांध दिए थे।

मगर सवाल है कि वहां मौजूद और बाद में सुर्खियों में आई तस्वीर को देखने वाले लोगों को यह कैसे पता हो सकता है कि ऐसा उनके स्वास्थ्य की वजह से हुआ। फिर क्या अपने पद से जुड़े व्यवहार की सीमा और उससे जुड़े नैतिक तकाजे का खयाल रखना खुद अधिकारी के लिए जरूरी नहीं था? यह ध्यान रखने की जरूरत है कि किसी विषम परिस्थिति में सहायता या सहयोग और पद के प्रभाव में किसी कनिष्ठ कर्मचारी से निजी काम कराने की प्रकृति बिल्कुल अलग होती है।

स्वास्थ्य संबंधी दिक्कत होने की स्थिति में किसी अधिकारी या कर्मचारी के पास अवकाश लेने का विकल्प होता है। फिर यह भी देखा जाता है कि किसी कनिष्ठ या निम्नवर्गीय कर्मचारी के द्वारा ‘जूते के फीते बांधने’ जैसी प्रकृति के काम के पीछे एक खास मनोभाव काम कर रहा होता है, जिसमें उच्च पद का प्रभाव या उसकी आभामंडल से जुड़ा मनोविज्ञान हावी रहता है।

ऐसी स्थिति में संबंधित अधिकारी की ही यह जिम्मेदारी होती है कि वह पद और आचरण के लिए नीतिगत तौर पर निर्धारित नियम और सामान्य नैतिक तकाजों का ध्यान रखे। विडंबना यह है कि देश में उच्च पदों पर बैठे अधिकारियों के सामंती व्यवहार से जुड़ी घटनाएं अक्सर सुर्खियों में आती रहती हैं, जो इस समूचे मसले पर एक नीतिगत कसौटी तय करने की जरूरत को रेखांकित करती हैं।