देश के विभिन्न इलाकों में रह रहे प्रवासियों की समस्या किस कदर गहरा चुकी है, इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि आज केंद्र सरकार के सामने उनके सही आंकड़े जुटाना मुश्किल हो चुका है। यह एक तरह से शुरुआती दौर में किसी समस्या की अनदेखी से उपजी हुई मुश्किल है, जो आज जटिल शक्ल अख्तियार कर चुकी है।

सोमवार को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर बताया कि देश के विभिन्न हिस्सों में रह रहे अवैध प्रवासियों के आंकड़े जुटाना संभव नहीं है। इसलिए कि बहुत सारे लोग चोरी-छिपे देश की सीमा में दाखिल होते हैं। गौरतलब है कि सर्वोच्च न्यायालय नागरिकता कानून की धारा 6ए की वैधता पर सुनवाई कर रहा है, जो असम में अवैध प्रवासियों से संबंधित है।

हाल ही में अदालत ने केंद्र सरकार से इससे संबंधित आंकड़े मांगे थे कि देश में एक जनवरी 1966 से लेकर 25 मार्च 1971 तक कितने बांग्लादेशी नागरिकों को असम में भारतीय नागरिकता प्रदान की गई। साथ ही अवैध घुसपैठ रोकने के लिए अदालत ने सरकार की ओर से उठाए गए कदमों के बारे में भी पूछा था।

शीर्ष अदालत की इस मसले पर केंद्र सरकार से स्थिति स्पष्ट करने की मांग के पीछे अवैध प्रवासियों की नागरिकता से लेकर उनकी वजह से पैदा होने वाली अन्य समस्याओं पर उठते सवालों का हल निकालने की कोशिश है। मगर अदालत को दिए गए केंद्र सरकार के जवाब से इस समस्या की जटिलता का अंदाजा लगता है।

सवाल है कि लंबे समय से देश के भीतर अलग-अलग इलाकों में उनकी पहचान तय कर पाने और उनके आंकड़े जुटाने में इस स्तर की समस्या क्यों खड़ी हुई है! आए दिन अन्य देशों से लगती सीमा को सुरक्षित करने के लिए व्यापक धनराशि खर्च करने और हर स्तर पर उपाय करने के दावे के बीच यह कैसे मुमकिन हो पाता है कि कुछ लोग गुप्त तरीके से भारतीय सीमा में न केवल दाखिल हो जाते, बल्कि अपनी पहचान छिपा कर यहां की आबादी में घुलमिल जाते हैं?

ऐसा नहीं है कि भारत में अवैध घुसपैठ के जरिए आने वाले पड़ोसी देशों के लोगों से उपजी समस्या नई है। भारत के पड़ोसी बांग्लादेश से अवैध तरीके से आए प्रवासी पिछले कई दशक से चिंता का कारण रहे हैं और कई बार इसने राजनीतिक मुद्दे की शक्ल भी अख्तियार की। यही नहीं, इस वजह से उपजे हिंसक टकराव में सैकड़ों लोगों की हत्या हो चुकी है।

असल में शरणार्थियों से जुड़े मानवाधिकारों के पहलू भी कई बार सरकारों को ज्यादा सख्त होने से रोकते रहे हैं। कभी-कभार पड़ोसी देशों की ओर से देश में घुस आए लोगों को इक्का-दुक्का मामला मान कर नजरअंदाज कर दिया जाता है। मगर सच यह है कि वही अनदेखी बाद में एक जटिल रूप ले लेती है, जब उसकी वजह से कई तरह की मुश्किलें खड़ी होने लगती हैं।

यह ध्यान रखने की जरूरत है कि भारत में अवैध घुसपैठ और प्रवासियों की वजह से कई स्थितियों में आंतरिक सुरक्षा पर भी गंभीर प्रभाव डालता है। अदालत को दिए गए जवाब में अब केंद्र सरकार ने यह भी कहा है कि अवैध घुसपैठ को रोकने के मकसद से सीमा पर बाड़ लगाई जा रही है। लेकिन घुसपैठ को रोकने के लिए उठाए गए कदमों में इस स्तर की देरी की गई है कि उसकी वजह से देश के भीतर उपजने वाली समस्याओं का कोई ठोस हल निकालना एक बड़ी चुनौती है।