इजराइल और हमास के बीच जारी युद्ध में आम नागरिकों पर हमले और उनकी हत्या के औचित्य पर शुरू से सवाल उठते रहे हैं। मगर इजराइल ने शायद ही कभी इस बात की फिक्र की। अब एक बार फिर गाजा पट्टी में इजराइल के ताजा हमले में कम से कम उन्नीस लोगों की जान चली गई। खबरों के मुताबिक, इजराइल ने खान यूनिस शहर के जिस इलाके में यह हमला किया, वहां युद्ध में विस्थापित हुए फिलिस्तीनी लोगों ने शरण ली हुई है।
इजराइली सेना ने इसे खुद मानवीय क्षेत्र के रूप में चिह्नित किया है। इसके बावजूद वहां इस स्तर का हमला करना समझ से परे है। हालांकि, इजराइल का तर्क है कि यह हमला हमास के शीर्ष लड़ाकों को निशाना बनाने के इरादे से किया गया, जो वहां स्थित कमान एवं नियंत्रण केंद्र के भीतर काम कर रहे थे। अगर उसकी आशंका सही हो तो भी क्या बड़ी तादाद में आम लोगों की हत्या को उचित ठहराया जा सकता है?
दुनिया भर में सशस्त्र संघर्षों या युद्ध की स्थिति में आम लोगों की रक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कायदे-कानून की नियमावली तैयार की गई है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने भी युद्धकाल के दौरान मानव बस्तियों, शिक्षा संस्थानों, अस्पतालों और आपदा राहत व मानव सहायता केंद्रों या शरणस्थलों पर हमले को नियमों के गंभीर उल्लंघन की सूची में शामिल किया है।
रूस-यूक्रेन के बीच भी चल रहा युद्ध
विडंबना यह है कि इजराइल और हमास के बीच जारी युद्ध हो या फिर रूस और यूक्रेन के बीच, आम नागरिकों की सुरक्षा से जुड़े कानूनों पर अमल जरूरी नहीं समझा जा रहा। गाजा पट्टी में इजराइल के हमलों में आम लोगों के हताहत होने की खबरें पहले भी कई बार आती रही हैं। हमास के लड़ाकों ने जब इजराइल की सीमा में घुसपैठ कर जनसंहार की वारदात को अंजाम देकर इस युद्ध की शुरुआत की थी तब इजराइल ने इसे अंतरराष्ट्रीय आम नागरिक सुरक्षा नियमों का गंभीर उल्लंघन बताया था।
मगर अब इजराइल की ओर से गाजा पट्टी में हो रहे हमलों में जो तस्वीर सामने आ रही है, उसे कैसे उससे अलग रूप में देखा जाएगा! सवाल है कि अगर युद्ध के दौरान आम नागरिकों की सुरक्षा का खयाल नहीं रखा जाता है तब फिर अंतरराष्ट्रीय कायदे-कानूनों का क्या महत्त्व है? संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद समेत तमाम देशों को इस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।