देश की आर्थिक स्थिति के आकलन में एक जरूरी पक्ष यह भी होना चाहिए कि आम लोग खानेपीने की चीजें खरीदने और उपभोग करने में कितना सहज महसूस करते हैं। मगर पिछले कुछ वर्षों से बाजार में जरूरी वस्तुओं की महंगाई की जैसी हालत है, उसमें लोगों के लिए अपना दो वक्त का उचित भोजन जुटा पाना एक चुनौती बन गई है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय यानी एनएसओ की ओर से जारी ताजा आंकड़ों के मुताबिक, खानेपीने का सामान महंगा होने की वजह से खुदरा महंगाई सितंबर महीने में बढ़ कर 5.49 फीसद पर पहुंच गई।
पिछले नौ महीने में खुदरा महंगाई का यह सबसे ऊंचा स्तर है। इस पर काबू पाने के सरकारी दावों के बरक्स हकीकत क्या है, इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि भारतीय रिजर्व बैंक लगातार खुदरा महंगाई दो फीसद की कमी या बढ़ोतरी के साथ चार फीसद के स्तर पर बनाए रखने की कोशिश कर रहा है। मगर यह चार फीसद की उस सीमा के पार पहुंच गई है।
खाने-पीने की चीजों में हुआ इजाफा
गौरतलब है कि बीते कुछ समय में रोजमर्रा की जरूरतों, खासकर खानेपीने की चीजों की कीमतों में तेजी से इजाफा हुआ है। महंगाई के मोर्चे पर कभी थोक बाजार के आंकड़ों में राहत के संकेत दिखाए जाते हैं, लेकिन हकीकत यह है कि जरूरी चीजों की खुदरा कीमतों पर इसका शायद ही कोई बड़ा असर दिखता है। रोजगार और आय में कमी, इसके स्रोतों की अनिश्चितता या लंबे समय से स्थिरता की वजह से ज्यादातर लोगों के सामने खानेपीने के सामान की कीमतें चुनौती बन गई हैं और कुछ भी खरीदते हुए लोगों को अपनी क्रयशक्ति के बारे में सोचना पड़ता है।
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हालत यह है कि बाजार में सब्जियों की कीमतें जिस तरह आसमान छू रही हैं, उसमें बहुत सारे लोगों के लिए जरूरत से काफी कम खरीदना मजबूरी हो गई है। यह स्थिति तब है जब खानेपीने की चीजों को प्राथमिकता देने के क्रम में लोग कई बार घरेलू या अन्य जरूरतों को पूरा करने का मामला टाल देते हैं। ऐसे में समझा जा सकता है कि अर्थव्यवस्था और विकास की चकाचौंध में कितने लोग अपनी जगह बना पा रहे होंगे।