निर्माण क्षेत्र में अच्छे प्रदर्शन से भारत में औद्योगिक उत्पादन की लुभावनी तस्वीर जरूर दिख रही है, लेकिन सच्चाई यह है कि पिछले वर्ष के मुकाबले इस मोर्चे पर चमक धुंधली या कमजोर ही पड़ी है। सरकार की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक, बीती जुलाई में औद्योगिक उत्पादन चार महीने के उच्चतम स्तर पर यानी 3.5 फीसद पर पहुंच गया है।

दरअसल, इसकी बड़ी वजह विनिर्माण क्षेत्र में आई तेजी है। मगर इसके बरक्स इसी वर्ष मार्च में यह 3.9 फीसद थी। जबकि पिछले वर्ष जुलाई में उत्पादन पांच फीसद की दर से बढ़ा था। यानी सालाना आधार पर तुलना करें, तो पिछले चार महीने के उच्च स्तर पर उत्पादन वृद्धि को बहुत उत्साहजनक नहीं माना जा सकता। वहीं इस वृद्धि को सिर्फ विनिर्माण क्षेत्र के भरोसे भी नहीं छोड़ा जा सकता। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के संशोधित आंकड़े खुद यह बताते हैं कि खनन उत्पादन में 7.2 फीसद गिरावट आई है। जबकि एक वर्ष पहले इसमें 3.8 फीसद की वृद्धि दर्ज की गई थी। इस बार बिजली उत्पादन भी उत्साहवर्धक नहीं। इसमें बेहद मामूली वृद्धि दर्ज की गई है।

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इसमें दोराय नहीं कि भारत को अपने औद्योगिक उत्पादन की रफ्तार तेज करनी होगी। छोटे लक्ष्यों को आधार मान कर और आंकड़ों के भरोसे अब नहीं रहा जा सकता। वह भी ऐसे समय में जब देश अमेरिका की ओर से थोपे गए मनमाने शुल्क का सामना कर रहा है और माना जा रहा है कि कई भारतीय उत्पादों पर इसका दूरगामी असर पड़ेगा। ऐसे में भारत को न केवल अपना बाजार मजबूत करना होगा, बल्कि नई संभावनाएं भी तलाशनी होंगी। सही है कि विनिर्माण क्षेत्र में असीमित संभावनाएं हैं।

मगर इसे अधिक प्रोत्साहित करने के साथ खनन और बिजली उत्पादन को दोगुना करना होगा। वक्त आ गया है कि सरकार आर्थिक मोर्चे पर नए रास्ते खोजने की ओर बढ़े, ताकि देश को दुनिया की तीसरी अर्थव्यवस्था बनाने के दावे को वास्तव में जमीन पर उतारने की कवायद को सही दिशा में आगे बढ़ाया जा सके।