भारत ने एक सौ एक सैन्य हथियारों और उपकरणों के आयात को चरणबद्ध बंद कर इन्हें देश में ही बनाने का जो फैसला किया है, वह रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम है। संभवत यह पहला मौका है जब घरेलू रक्षा उद्योग के विकास के लिए इस तरह की बड़ी पहल हुई। वैसे तो अब भारत कई तरह के हथियार, टैंक, मिसाइलें आदि बनाने में सक्षम हो चुका है। लेकिन फिर भी कई छोटे सैन्य हथियार और उपकरण, कलपुर्जे ऐसे हैं जो हम देश में बना सकते हैं, पर अभी तक इसकी शुरुआत नहीं कर पाए हैं और इनके लिए दूसरे देशों पर निर्भर हैं। इनमें तोप, छोटी मिसाइलें, उड़ान प्रशिक्षण के लिए इस्तेमाल होने वाले विमान, मालवाहक विमान, बुलेट प्रूफ जैकेट, राकेट लांचर, हल्की मशीन गन जैसे हथियार शामिल हैं।

करगिल युद्ध के बाद से ही यह जरूरत महसूस की जा रही थी कि भारत के रक्षा उद्योग को खड़ा किया जाए और ज्यादातर हथियार देश में ही बनाए जाएं। लेकिन यह हैरानी और अफसोस की बात है कि इस जरूरत को समझते हुए भी लंबे समय तक इस अति महत्त्वपूर्ण और गंभीर मुद्दे पर कोई कदम नहीं बढ़ाया गया और हम हथियारों के लिए दूसरे देशों पर निर्भर बने रहे। साल 2014 में मेक इन इंडिया के अभियान के तहत घरेलू रक्षा उद्योग का विकास प्राथमिकता पर रखा तो गया, लेकिन पिछले छह सालों में इसके अपेक्षित नतीजे देखने को नहीं मिले।

इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत की रक्षा जरूरतें तेजी से बढ़ रही हैं। एक ओर पाकिस्तान की लंबी सीमा है, तो दूसरी ओर चार हजार किलोमीटर से भी ज्यादा चीन से लगती सीमा है। ये दोनों देश भारत की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बने हुए हैं। इसके अलावा भारत तीन तरफ से समुद्रों से घिरा है। ऐसे में नौ सेना की जिम्मेदारियां भी कम नहीं हैं। इसलिए देश की सामरिक चुनौतियों को देखते हुए यह अपरिहार्य हो गया है कि ज्यादा से ज्यादा हथियार देश में ही बनें।

सरकार ने चार साल का वक्त तय किया है, जिसमें चरणबद्ध तरीके से हथियारों के आयात को पूरी तरह से बंद कर दिया जाएगा। इसलिए इन चार वर्षों के भीतर घरेलू रक्षा उद्योग को पूरी तरह से सक्षम बनाना होगा। देश में रक्षा उत्पादन इकाइयां शुरू होने से रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे, हथियार खरीद पर खर्च होने वाली विदेशी मुद्रा बचेगी और हथियारों की खरीद में लगने वाले लंबे समय से बचा सकेगा।

आज भारत में किसी भी स्तर पर संसाधनों और विशेषज्ञों की कमी नहीं है। लेकिन फिर भी हम रक्षा उद्योग में दुनिया के कई देशों से पीछे हैं। इसकी बड़ी वजह आत्मनिर्भरता के मामले में हमारे नीति-निमार्ताओं की उदासीनता और दूसरे देशों पर निर्भर रहने की प्रवृत्ति मूल रूप से रही है। जबकि देश की सीमा पर जवानों को पुराने और घटिया हथियारों के साथ दुश्मन का मुकाबला करने को मजबूर होना पड़ा है।

अगर ये हथियार देश में ही बनने लगेंगे, तो सेना को तत्काल मिल सकेंगे और हथियारों की खरीद में होने वाले भ्रष्टाचार जैसी समस्या से भी काफी हद तक निजात मिल सकेगी और गुणवत्तापूर्ण हथियार भी मिल सकेंगे। रक्षा शोध और विकास के मामले में भारत अब काफी आगे है। हम अत्याधुनिक मिसाइलों और उपग्रहों का विकास कर चुके हैं। अंतरिक्ष में उपग्रह मार गिराने की क्षमता हासिल कर चुके हैं। तो फिर हथियारों, जरूरी सैन्य उपकरणों और कलपुर्जों के आयात के लिए दूसरों का मुंह ताकने की क्या जरूरत है?