रूस में एक और भारतीय युवक के युद्ध में मारे जाने को लेकर आवाजें उठनी शुरू हो गई हैं। लोकसभा में विपक्ष के एक नेता के सवाल के जवाब में विदेश राज्यमंत्री ने कहा कि रूस ने अपनी सेना में भर्ती दस भारतीय युवकों को मुक्त कर दिया है और वे जल्दी ही वापस लौट आएंगे। इसी महीने प्रधानमंत्री ने रूस यात्रा के दौरान वहां के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात में यह मुद्दा उठाया था और कहा गया था कि रूस ने इस मामले को गंभीरता से लिया है। बाकी युवाओं के भी जल्दी वापस लौटने की उम्मीद है।
युवाओं की संख्या की जानकारी नहीं
हालांकि अभी तक इस बात की ठीक-ठीक जानकारी नहीं है कि कितने भारतीय युवा रूसी सेना में शामिल किए गए हैं और उनमें से कितनों को युद्ध क्षेत्र में अगली कतार में तैनात किया गया है। पिछले दिनों जब दो भारतीय युवाओं के युद्ध में मारे जाने की खबर आई थी, और कुछ युवाओं ने अपनी तस्वीर डाल कर रिहाई की गुहार लगाई थी, तब इस बात का खुलाया हुआ था कि बड़ी संख्या में भारतीय युवाओं को रोजगार दिलाने के नाम पर धोखे से रूसी सेना में तैनात कर यूक्रेन के साथ युद्ध में तैनात किया गया है। तब भी सरकार ने आश्वस्त किया था कि ऐसे नौजवानों को वापस लाने की कोशिश की जा रही है।
दरअसल, नौकरी दिलाने के नाम पर कुछ एजंटों ने युवाओं से भारी रकम लेकर फर्जी कागजात के जरिए गुप्त रास्तों से उन्हें रूस भेज दिया। शुरू में इन नौजवानों को सुरक्षा सहायक के तौर पर भर्ती किया गया और फिर डरा-धमका कर युद्ध क्षेत्र में धकेल दिया गया। कुछ लोगों का अनुमान है कि सौ से ऊपर ऐसे युवा रूसी सेना में शामिल कर लिए गए हैं। अब सरकार ने उन एजंटों की पहचान शुरू कर दी है, जो धोखे से नौजवानों को विदेशों में नौकरी के लिए भेजती हैं। कुछ एजंट पकड़ भी लिए गए हैं।
हालांकि इस तरह फर्जी कागजात बना कर युवाओं को नौकरी दिलाने के नाम पर विदेश भेजने का धंधा कोई नया नहीं है। ऐसे लोगों पर शिकंजा कसने के अनेक प्रयास हो चुके हैं, लोगों से अपील की जाती है कि विदेश मंत्रालय में पंजीकरण करा कर ही दूसरे देश में नौकरी आदि के लिए जाएं, मगर फिर भी गलत तरीके से विदेश जाने का सिलसिला रुक नहीं रहा। सरकार के सामने मुश्किल तब खड़ी हो जाती है, जब इस तरह दूसरे देशों में गए लोग किसी मुसीबत में फंस जाते हैं।
हमारे देश में बेरोजगारी का आलम यह है कि एक पद के लिए हजारों अभ्यर्थी कतार में लग जाते हैं। वे किसी भी तरह रोजगार पाना चाहते हैं। दूसरे देशों में चूंकि रोजगार के अवसर अधिक हैं और वहां वेतन आदि भी अच्छा मिल जाता है, इसलिए किसी भी दूसरे देश में जाने को तैयार रहते हैं। इसके लिए जमीन-जायदाद बेच कर एजंटों को पैसा देने को भी तैयार हो जाते हैं। इसी ललक का फायदा एजंट उठाते हैं। रूस भेजे गए नौजवानों को अगर वहां की सेना में भर्ती कर युद्ध क्षेत्र में तैनात न किया गया होता, तो यह मामला भी सामने न आता। ऐसे में फिर से सरकार के सामने यह प्रश्न रेखांकित हुआ है कि आखिर वह कबूतरबाजी करने वाले एजंटों पर नकेल कसने और गलत रास्ते से विदेश जाने वाले युवाओं को जागरूक कर पाने में सफल क्यों नहीं हो पा रही।