भारतीय कुश्ती महासंघ के चलते एक बार फिर भारत को खेल की दुनिया में किरकिरी झेलनी पड़ रही है। संयुक्त विश्व कुश्ती यानी यूनाइटेड वर्ल्ड रेसलिंग ने भारतीय कुश्ती महासंघ की सदस्यता निलंबित कर दी है। ऐसा उसने भारतीय कुश्ती महासंघ का चुनाव न हो पाने की वजह से किया है। हालांकि यूनाइटेड वर्ल्ड रेसलिंग यानी यूडब्लूडब्लू ने करीब तीन महीने पहले ही पत्र लिख कर चेतावनी दे दी थी कि भारतीय कुश्ती महासंघ पैंतालीस दिनों के भीतर अपने पदाधिकारियों का चुनाव करा ले, नहीं तो उसकी सदस्यता रद्द की जा सकती है।
जून महीने में ही हो जाना चाहिए था महासंघ का चुनाव
कुश्ती महासंघ के पदाधिकारियों का चुनाव कायदे से जून महीने में ही हो जाना चाहिए था, मगर कुछ अड़ंगेबाजियों और खेल मंत्रालय की शिथिलता के चलते नहीं हो सका। पहले असम कुश्ती संघ इन चुनावों पर रोक लगाने का अदालती आदेश लेकर आ गया, फिर हरियाणा कुश्ती संघ ने इस पर रोक लगवा दी। फिलहाल कुश्ती महासंघ का कामकाज भारतीय ओलंपिक संघ के पदाधिकारी देख रहे हैं।
तटस्थ खिलाड़ी की तरह UWW के झंडे तले खेलना पड़ेगा
यूडब्लूडब्लू के ताजा फैसले के बाद भारतीय पहलवानों के सामने एक नया संकट खड़ा हो गया है। अब वे भारतीय झंडे के नीचे नहीं खेल सकेंगे। उन्हें तटस्थ खिलाड़ी की तरह यूडब्लूडब्लू के झंडे तले खेलना पड़ेगा। अगले महीने से सर्बिया में ओलंपिक के लिए विश्व कुश्ती चैंपियनशिप शुरू हो रही है। छिपी बात नहीं है कि राजनीतिक रस्साकशी के चलते भारतीय कुश्ती महासंघ और उसके खिलाड़ियों को यह दिन देखना पड़ रहा है।
इस साल फरवरी में जब महिला पहलवानों ने कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह पर यौन शोषण का आरोप लगाया और धरने पर बैठ गईं, तभी खेल मंत्रालय से इस मामले में निष्पक्ष कार्रवाई की उम्मीद की गई थी। तब मंत्रालय कुछ सक्रिय भी नजर आया था। बृजभूषण शरण सिंह को तदर्थ रूप से उनके पद से हटा कर एक समिति गठित कर दी गई थी, जो पहलवानों की शिकायतों का निपटारा करने वाली थी। मगर वह समिति न केवल निष्क्रिय बनी रही, बल्कि महिला पहलवानों के खिलाफ नजर आने लगी थी। इससे नाराज पहलवान फिर से धरने पर बैठ गए और वह लंबा खिंचता चला गया।
सरकार की तरफ से कोई सकारात्मक पहल नहीं हो सकी, बल्कि पहलवानों को धरना वापस लेने पर मजबूर किया जाता रहा। सरकार का झुकाव बृजभूषण शरण सिंह की तरफ नजर आता रहा। आखिरकार सर्वोच्च न्यायालय के दखल से महिला पहलवानों की प्राथमिकी दर्ज की गई, मगर दिल्ली पुलिस की जांच निष्क्रिय बनी रही। आखिरकार पहलवानों के धरने को कुचल दिया गया।
महिला पहलवानों के साथ सरकार और प्रशासन के ऐसे व्यवहार को लेकर दुनिया भर में अंगुलियां उठी थीं। यूडब्लूडब्लू ने तब भी कहा था कि सरकार इस मामले को जल्दी सुलझाए और महिला पहलवानों की गरिमा को सुरक्षित रखे। मगर कोई सकारात्मक पहल नहीं देखी गई। यह भी छिपी बात नहीं है कि कुश्ती महासंघ के पदाधिकारियों के चुनाव में देरी के पीछे यही राजनीतिक मंशा काम करती रही।
हालांकि बृजभूषण शरण सिंह को फरवरी में ही उनके पद से हटा दिया गया था, फिर उनका कार्यकाल में मई में समाप्त हो गया। ऐसे में चुनाव की प्रक्रिया तभी शुरू हो जानी चाहिए थी, मगर शायद कुछ लोगों को उम्मीद रही होगी कि बृजभूषण शरण सिंह पर लगे आरोप जल्दी ही हट जाएंगे और वे फिर से अपने पद पर वापस आ जाएंगे। मगर ऐसा हो न सका और अब देश को यह शर्म झेलनी पड़ रही है।