अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के फलक पर हौसला और कोशिश के स्तर पर भारत की महिला क्रिकेट टीम ने हर बार बेहतर प्रदर्शन करने की कोशिश की और कई बार अपनी क्षमता को साबित भी किया, लेकिन रविवार को इस टीम के बूते भारतीय क्रिकेट में एक शानदार और यादगार कामयाबी दर्ज हुई। नवी मुंबई के डीवाइ पाटिल स्टेडियम में खेले गए महिला विश्व कप के फाइनल में भारतीय टीम का जैसा प्रदर्शन रहा, उसे बल्लेबाजी से लेकर गेंदबाजी के सभी स्तर पर खिलाड़ियों के बीच बेहतरीन संतुलन और तालमेल का परिणाम कहा जा सकता है।

इस मैच में टास दक्षिण अफ्रीका की टीम ने जीता, लेकिन उसके बाद पहले बल्लेबाजी करते हुए भारतीय खिलाड़ियों ने शुरूआती हिचक के बाद जिस रफ्तार और लय के साथ दो सौ निन्यानबे रन का लक्ष्य सामने रख दिया, उसे हासिल करना प्रतिद्वंद्वी टीम के लिए एक चुनौती बन गई। आखिरकार दक्षिण अफ्रीका की टीम छियालीसवें ओवर में दो सौ छियालीस रन बना सकी। कप्तान लारा ने एक सौ एक रन की पारी खेली और अपनी टीम को लड़ाई में बनाए रखने की कोशिश की, लेकिन भारतीय खिलाड़ियों ने गेंदबाजी और क्षेत्ररक्षण में भी जैसी रणनीति अपनाई, उसमें वे दक्षिण अफ्रीका को खिताबी मैच में हार से नहीं बचा सकीं।

2005 और 2017 में भी भारतीय टीम ने खेला था फाइनल

भारतीय क्रिकेट की मुख्यधारा में भले ही पुरुष टीम को ज्यादा सुर्खियां मिलती रही हैं, मगर इसके समांतर महिलाओं की क्रिकेट टीम ने भी अपनी निरंतरता बनाए रखी है और समय-समय पर इसे साबित भी किया है। यह भी ध्यान रखने की जरूरत है कि इस बार के फाइनल में शानदार जीत दर्ज करने से पहले भारतीय महिला टीम की खिलाड़ियों ने सेमीफाइनल और प्रतियोगिता के अन्य मैचों में भी बेहतरीन प्रदर्शन किया था और फाइनल में जीत की भूमिका उसी से बनी थी।

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निश्चित रूप से यह भारत के लिए एक बड़ी उपलब्धि है, क्योंकि देश की महिला क्रिकेट की टीम ने विश्व कप पर पहली बार कब्जा जमाया है। इससे पहले 2005 और 2017 में भारतीय महिलाओं की टीम ने फाइनल में जगह बनाई थी, लेकिन तब खिताब से वे दूर रह गई थीं। इस बार विश्व कप की विजेता बन कर उन्होंने साबित कर दिया कि अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट की दुनिया में भारत की महिला खिलाड़ियों की टीम भी एक समांतर शक्ति है।