ब्रिटेन में भारत के विदेश मंत्री के काफिले को खालिस्तानी अलगाववादियों ने जिस तरह निशाना बनाया, उससे साफ है कि वहां की सरकार अपने मेहमानों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के मामले में नाकाम हुई है। भारत की ओर से कनाडा और ब्रिटेन सहित कुछ अन्य देशों में खालिस्तानी अलगाववादी संगठनों के उभार और उन्हें मिलने वाले समर्थन को लेकर आए दिन चिंता जताई जाती रही है। अफसोस की बात है कि इस तरह की चिंता की आमतौर पर अनदेखी की जाती है और कई प्रत्यक्ष घटनाओं के बावजूद उन पर गंभीर कदम उठाने की मांग को दरकिनार कर दिया जाता है।
यही वजह है कि शुरूआत में छोटे स्तर पर अपनी गतिविधियां संचालित करने वाले उग्रवादी तत्त्वों को अपने पांव पसारने का मौका मिलता है और वे मौका मिलते ही किसी बड़ी घटना को अंजाम देते हैं। भारतीय विदेश मंत्री वहां से सुरक्षित निकल गए, वरना जिस तरह की घटनाएं सामने आ रही हैं, उसमें सुरक्षा घेरे को तोड़ कर काफी करीब पहुंच चुके लोगों के कुछ अप्रत्याशित करने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।
सुरक्षा का घेरा तोड़ जयशंकर की गाड़ी के पास पहुंच गए थे खालिस्तानी
गौरतलब है कि यूक्रेन-रूस युद्ध और यूरोप में चल रही अशांति के बीच ब्रिटेन पहुंचे भारत के विदेश मंत्री जब एक बैठक में शामिल होकर ‘चैथम हाउस’ से बाहर निकल रहे थे, तब कुछ खालिस्तानी उग्रवादियों ने उनके सामने नारेबाजी की। बल्कि वहां जो सुरक्षा घेरा था, उसे भी तोड़ कर एक व्यक्ति विदेश मंत्री की कार के सामने आ गया। आखिर इतने अहम मौके और भारत के विदेश मंत्री के वहां से सुरक्षित निकलने में इस स्तर की बाधा आने के लिए किसकी जवाबदेही है।
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वहां अगर कोई अप्रत्याशित घटना होती, तो उसकी जिम्मेदारी कौन लेता? साफ है कि यह उच्च स्तर पर सुरक्षा में चूक और लापरवाही का मामला है। इस घटना का जो ब्योरा सामने आया है, उससे समूचे प्रकरण में लंदन पुलिस की नाकामी ही उजागर हो रही है। सवाल है कि ब्रिटेन में लोकतांत्रिक स्वतंत्रता के नाम पर किसी तरह की गतिविधि को किस हद तक छूट दी जाएगी। अगर ब्रिटेन की सरकार इस तरह के हालात और आशंकाओं को नजरअंदाज करती है, तो इसके नतीजों का अंदाजा लगाया जा सकता है।
ब्रिटेन और कनाडा जैसे कुछ देशों में खालिस्तान समर्थक चलाते हैं अलगाववादी गतिविधियां
यह छिपा नहीं है कि ब्रिटेन या कनाडा जैसे कुछ देशों में खालिस्तान समर्थक अलगाववादी कैसी गतिविधियां चलाते हैं और वहां उन्हें किस स्तर पर संरक्षण मिलता है। इस मसले पर भारत की ओर से अक्सर आपत्ति जताई जाती रही है और ऐसे तत्त्वों के खिलाफ कार्रवाई की मांग भी की जाती है। मगर यह अफसोसनाक है कि लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर खालिस्तान अलगाववादियों को फलने-फूलने की परोक्ष इजाजत दी जाती है। छोटे स्तर पर की जाने वाली हरकतों को नजरअंदाज किए जाने का ही नतीजा है कि अब वे बड़े स्तर की गतिविधियों को अंजाम देने लगे हैं।
करीब दो वर्ष पहले खालिस्तान समर्थकों ने ब्रिटेन स्थित भारतीय उच्चायोग परिसर में घुस कर तिरंगा निकाल दिया था। उस समय भी भारत ने ब्रिटेन की सरकार से खालिस्तान समर्थकों की गतिविधियों पर निगरानी बढ़ाने को कहा था। कुछ महीने पहले ब्रिटिश गृह मंत्रालय की एक रपट की खबर सामने आई थी, जिसमें खालिस्तान आंदोलन को उग्रवाद का नया रूप और देश के लिए प्रमुख खतरा बताया गया था। तथ्यगत रूप से इसकी जानकारी होने के बावजूद ब्रिटेन की सरकार भारत के सामने चुनौती रखने वाले किसी समूह को किन कारणों से रियायत दे रही है?