पिछले कई दिनों से घरेलू शेयर बाजार में अनिश्चितता, कच्चे तेल की ऊंची कीमतों और भारत-अमेरिका व्यापार समझौते पर असमंजस के बीच भारतीय मुद्रा भी कमजोर हो रही है। रुपया बुधवार को पच्चीस पैसे टूट कर 90.21 प्रति डालर के सर्वकालिक निचले स्तर पर आ गया। पिछले पांच दिनों से यह गिरावट देखी जा रही है। सवाल है कि डालर के मुकाबले भारतीय मुद्रा का मूल्य क्यों गिरता जा रहा है?
यह निराशाजनक है कि दुनिया के प्रमुख देशों की मुद्रा की तुलना में रुपया कमजोर होता चला गया है। इसकी बड़ी वजह डालर की बढ़ती मांग के साथ विदेशी निवेशकों की शेयर बाजार से मुनाफावसूली भी मानी जा रही है। इसके अलावा इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि भारत पर अमेरिकी शुल्क लगाने का भी रुपए पर प्रतिकूल असर पड़ा है। मगर सवाल है कि भारतीय रिजर्व बैंक रुपए को संभालने के लिए ठोस एवं प्रभावी कदम क्यों नहीं उठा पा रहा है?
महंगाई या निर्यात पर कोई असर नहीं पड़ने जा रहा
इसमें कोई दोराय नहीं है कि अमेरिकी शुल्क की घोषणा के बाद से विदेशी निवेश का प्रवाह कम हुआ है और इसका असर घरेलू शेयर बाजार भी पड़ा है। मगर ऐसा लगता है कि सरकार इस स्थिति को शायद गंभीरता से नहीं ले रही है। मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन का मानना है कि भारतीय मुद्रा में गिरावट चिंता का विषय नहीं है, क्योंकि इसका महंगाई या निर्यात पर कोई असर नहीं पड़ने जा रहा। उन्होंने अगले वर्ष की शुरूआत में डालर के मुकाबले रुपए में सुधार की उम्मीद जताई है। मगर अभी जिस हिसाब से भारतीय मुद्रा में गिरावट का सिलसिला जारी है, उसमें कितना और कैसे सुधार होगा, फिलहाल इसकी कोई साफ तस्वीर नजर नहीं आ रही है।
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बाजार में नरमी के बीच निवेशकों की जो आशंकाएं है, उन्हें कौन दूर करेगा? जाहिर है कि इस सूरत में रिजर्व बैंक को रुपए के समर्थन में मजबूती से हस्तक्षेप करना होगा। भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौता होने के बाद भी रुपए में गिरावट थमेगी या नहीं, यह कहना अभी मुश्किल है। रुपया और कमजोर न हो, इसके लिए अब सभी स्तरों पर कदम उठाने की जरूरत है।
