कश्मीर घाटी में अपनी मौजूदगी बनाए रखने और साजिशों को अंजाम देने के मकसद से आतंकी संगठन पिछले कुछ समय से अपनी रणनीति में तेजी से बदलाव करते देखे जा रहे हैं। अभी भारतीय सेना ने खुलासा किया कि घाटी में सक्रिय आतंकी संगठन संचार के पारंपरिक संसाधनों के बजाय महिलाओं, लड़कियों और किशोरों के जरिए सूचनाएं पहुंचा रहे हैं।

उन्हीं के माध्यम से हथियारों और मादक पदार्थों आदि की पहुंच भी सुनिश्चित कर रहे हैं। सेना ने इसे एक खतरनाक प्रवृत्ति माना है। इसमें पाकिस्तानी खुफिया एजंसी आइएसआइ की संलिप्तता के भी प्रमाण जुटाए हैं। आतंकवादियों के संदेशवाहक के रूप में काम कर रहे ऐसे कई लोगों को पकड़ा भी जा चुका है। इससे निपटने के लिए नई रणनीति के तहत सभी सुरक्षाबलों को सचेत कर दिया गया है।

दरअसल, पिछले कुछ सालों से आतंकी संगठनों के संचार माध्यमों से सूचनाओं के आदान-प्रदान पर भारतीय सुरक्षा बलों और खुफिया एजंसी की पैनी नजर बनी हुई है, इस तरह उनकी साजिशों के बारे में पहले ही जानकारी मिल जाती रही है। इस तरह उनके ठिकानों पर हमला या उनकी घेराबंदी कर उन्हें पकड़ने या मार गिराने में काफी कामयाबी मिली है। ऐसे में स्वाभाविक ही, आतंकियों ने पारंपरिक संचार माध्यमों का रास्ता छोड़ कर सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए मासूम लोगों का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया।

आतंकवादियों के इस तरह महिलाओं, किशोरों और बच्चियों के इस्तेमाल से कई गंभीर सवाल उठते हैं। इससे एक तो यह स्पष्ट है कि स्थानीय स्तर पर आतंकवादियों का समर्थन पहले से बढ़ा है। कट्टरपंथ को रोकने के जितने भी उपाय आजमाए गए, वे कारगर साबित नहीं हुए हैं। यही वजह है कि कट्टरपंथी मासूम लोगों को बरगलाने में कामयाब हो रहे हैं और फिर उनका इस्तेमाल आतंकवादी अपनी साजिशों के लिए कर रहे हैं।

जब तक स्थानीय लोगों का आतंकियों को समर्थन बंद नहीं होता, तब तक आतंकवाद की जड़ें समाप्त करना चुनौती बनी रहती है। पिछले साल खुद केंद्रीय गृहमंत्रालय ने स्वीकार किया था कि जिन दिनों जम्मू-कश्मीर में संचार सेवाएं ठप थीं, पूरी घाटी में कर्फ्यू का आलम था, उस दौरान भी आतंकी संगठनों में कश्मीरी युवाओं की भर्ती पहले की तुलना में कुछ अधिक हुई। अब अगर महिलाएं भी उनके सहयोग में शामिल दिखने लगी हैं, तो निश्चित रूप से यह गंभीर चिंता का विषय है।

यह भी छिपा तथ्य नहीं है कि कश्मीर घाटी में आतंकी संगठनों को प्रश्रय पाकिस्तान की तरफ से मिलता रहा है। सीमा पार चल रहे आतंकी प्रशिक्षण शिविरों पर भारतीय सेना की लगातार नजर बनी रहती है। फिर भी सवाल है कि कैसे हथियारों, पैसे, मादक पदार्थों आदि की पहुंच उधर से इधर हो पा रही है।

सड़क मार्ग से तिजारत बंद है, सीमा पर चौकसी चुस्त है, फिर भी अगर आइएसआइ और पाकिस्तान में जड़ें जमाए आतंकी संगठन घाटी में अपनी साजिशों को अंजाम देने में कामयाब हो पा रहे हैं, तो यह केवल मासूमों को संदेशवाहक के रूप में इस्तेमाल करके संभव नहीं हो सकता। पिछले कुछ महीनों में सेना के काफिले या उनके ठिकानों पर जिस तरह के आतंकी हमले हुए हैं, उनमें जिस तरह के साजो-सामान का उपयोग किया गया है, कैसे दहशतगर्दों तक पहुंचा और इसकी भनक तक खुफिया एजंसियों को नहीं मिल पाई, यह बड़ी चुनौती है।

इसलिए सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए मासूमों के इस्तेमाल पर नजर रखने के साथ-साथ आतंकवादियों की बदलती रणनीति को भी बारीकी से समझने की जरूरत है।