भारत के आइसीसी चैंपियंस ट्राफी जीतने पर देश में सभी को खुशी हुई होगी। इस मौके पर जश्न मनाना भी स्वाभाविक है। मगर इससे उपजी इस अफसोसनाक स्थिति पर समाज के सभी संवेदनशील लोगों को सोचने की जरूरत है कि अगर कोई मौका सभी के लिए खुश होने का हो, उस समय दो पक्षों के बीच टकराव देश को किस ओर ले जाएगा। गौरतलब है कि चैंपियंस ट्राफी में भारत के खिताब जीतने के बाद जब रविवार को मध्यप्रदेश में इंदौर के महू में कुछ लोग विजय जुलूस निकाल रहे थे, तो एक मस्जिद के पास दो पक्षों में विवाद हो गया। इसके बाद पत्थरबाजी हुई और फिर लोगों ने दुकानों और वाहनों में आग लगा दी।

गुजरात के गांधीनगर में भी जीत के जश्न में निकाली गई रैली के दौरान हिंसक घटना हुई। हालांकि पुलिस ने स्थिति संभाल ली, मगर यह सवाल बेहद दुखद है कि खुशी जाहिर करने के मौके पर किसी भी व्यक्ति या समूह को तनाव और हिंसा का माहौल पैदा करने की खुराफात क्यों सूझती है और क्या ऐसे लोग समाज और देश के हित को प्रभावित नहीं करते।

देश की सांस्कृतिक संरचना को पहुंचता है नुकसान

दरअसल, जब भी इस तरह की कोई घटना होती है, तब सबसे ज्यादा देश की उस सांस्कृतिक संरचना को नुकसान पहुंचता है, जिसमें आमतौर पर सभी लोग शांति और खुशी से साथ रहने की कोशिश करते हैं। लेकिन अक्सर ऐसी घटनाएं सामने आ जाती हैं, जिनमें देश की किसी उपलब्धि पर खुशी जाहिर करने के क्रम में दो पक्षों के बीच टकराव और हिंसा की स्थिति बन जाती है। यह बेहद तकलीफदेह स्थिति है।

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इसके बाद भले पुलिस दखल देकर स्थिति पर नियंत्रण कर ले, मगर इस बीच आपसी संदेह का जो माहौल बन जाता है, वह किसी के लिए अच्छा नहीं होता। आमतौर पर लोगों को बेवजह उन्माद से नुकसान समझ में आ जाता है, पर तब तक देर हो चुकी होती है और बहुत कुछ बिगड़ जाता है। जरूरत इस बात की है कि खुशी और जश्न के बीच होने वाली हिंसा की घटनाओं को सबक के तौर पर लिया जाए और सभी समुदाय के लोग इस मसले पर सजग रहें, ताकि वैसी स्थिति दोबारा न पैदा हो।