पिछले कुछ समय से भारत और अमेरिका के बीच आर्थिक मोर्चे पर जिस तरह के उतार-चढ़ाव लगातार कायम हैं, उसमें फिलहाल किसी निष्कर्ष पर पहुंचना मुश्किल है। मगर यह जरूर कहा जा सकता है कि अब फिर से संबंधों को सहज बनाने के अवसर निकाले जा रहे हैं, माहौल को सकारात्मक बनाया जा रहा है।

मसलन, दक्षिण कोरिया के ग्योंगजू में आयोजित एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग सीईओ शिखर सम्मेलन में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि भारत के साथ अमेरिका व्यापार समझौता कर रहा है। दूसरी ओर, भारत के विदेश मंत्रालय की ओर से गुरुवार को कहा गया कि अमेरिका ने चाबहार बंदरगाह परियोजना पर अमेरिकी प्रतिबंधों से भारत को छह महीने की छूट दी है। गौरतलब है कि सितंबर के आखिर से अमेरिका ने चाबहार बंदरगाह का संचालन करने वालों पर प्रतिबंध लागू कर दिया था।

दरअसल, भारत ने पिछले वर्ष मई में चाबहार बंदरगाह के संचालन के लिए अगले दस वर्षों तक के लिए एक अनुबंध किया था। इससे भारत को मध्य एशिया के देशों के साथ व्यापार बढ़ाने में मदद मिलने की उम्मीद है। यह इस लिहाज से अहम है कि विदेश की धरती पर भारत को पहली बार किसी बंदरगाह के प्रबंधन की जिम्मेदारी मिली थी।

चाबहार बंदरगाह को अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे के लिए काफी महत्त्वपूर्ण माना जाता है। इस मार्ग से भारत के लिए यूरोप तक पहुंचना आसान हो जाएगा। साथ ही इससे ईरान तथा रूस को भी लाभ मिल सकता है। मगर अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप ने जब दूसरे देशों को अपनी नीतियों के मुताबिक संचालित करने के मकसद से शुल्क लगाने की घोषणा की, तब उसके लिए कुछ अन्य कदम भी उठाए, जिसमें रूस से तेल खरीदने के मसले पर भारत पर जुर्माना लगाने से लेकर चाबहार बंदरगाह का संचालन करने वालों पर पाबंदी लगाना भी शामिल था।

जाहिर है, यह नीति वास्तव में एक स्थिति से निपटने के लिए दूसरी नई समस्याओं को गढ़ना था, जिसका कोई औचित्य नहीं था। यह बेवजह नहीं है कि ट्रंप को अपनी ही घोषित नीतियों पर नरम पड़ने या उसमें बदलाव करने की जरूरत महसूस होती रही है। पिछले कुछ महीनों के दौरान अलग-अलग मुद्दों पर अपनी घोषणाओं के मसले पर उनके रुख में कई बार बदलाव देखा गया।

यों भारत ने अपनी तरफ से किसी ऐसी नीति पर चलने का फैसला नहीं किया है, जिससे ऐसा लगे कि वह अमेरिका के हाल के फैसलों के खिलाफ कोई कदम उठा रहा है। मगर अमेरिका ने जब से अपने यहां आयातित वस्तुओं पर शुल्क लगाने की नीति लागू की और उसका दायरा बढ़ाता गया, उसमें यह साफ दिखा कि उसके मुख्य निशाने पर भारत है। अमेरिका की शुल्क नीति को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक तरह से अघोषित व्यापार युद्ध की स्थिति पैदा करने की कोशिश के तौर पर देखा गया।

यह स्वाभाविक ही है कि इससे प्रभावित होने वाला कोई भी देश अपनी स्थिति को संतुलित रखने के लिए वैकल्पिक उपायों की खोज करता। भारत के सामने भी यही स्थिति है और इसी क्रम में इसने रूस के साथ तेल सौदे से लेकर कूटनीतिक कोशिशों सहित अन्य कई पहलकदमी की।

अब अगर अमेरिका संबंध सहज करने के मकसद से फिर नए रास्ते तैयार करने की कोशिश में है, तो इसे सकारात्मक माना जा सकता है। यों भी, दोनों देशों के बीच व्यापार वार्ता को आगे बढ़ाना वक्त की जरूरत है, जिसका प्रभाव दूरगामी होगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस दिशा में अमेरिका अब कोई ठोस कदम उठाएगा।