भारत और पाकिस्तान के बीच एक बार फिर शांति वार्ता शुरू हुई है। दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों ने बैंकाक में शांति और सुरक्षा, आतंकवाद, जम्मू-कश्मीर और नियंत्रण रेखा पर स्थिरता आदि से जुड़े मसलों पर लंबी बातचीत की। यह वार्ता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के बीच पेरिस में हुई बातचीत में बनी सहमति के आधार पर हुई। ऐसी ही सहमति रूस के ऊफा में दोनों प्रधानमंत्रियों के बीच बनी थी, मगर तब पाकिस्तान में इसके खिलाफ माहौल गरम हो गया था। वहां के विदेशमंत्री सरताज अजीज ने तत्काल बयान जारी कर दिया था कि जब तक कश्मीर मसले का हल नहीं निकलता, तब तक भारत के साथ दूसरे मुद्दों पर बातचीत संभव नहीं है। उधर भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त ने दोनों देशों के सुरक्षा सलाहकारों के बीच वार्ता की तय तारीख से पहले हुर्रियत नेताओं को बातचीत के लिए बुला लिया।

इस तरह वह बातचीत का सिलसिला कायम नहीं हो पाया था। इस बार इसीलिए दोनों सरकारों ने बिना किसी शोर-शराबे के बैंकाक में बातचीत करने का रास्ता निकाला कि पहले जैसा कोई व्यवधान न पड़े। हालांकि पाकिस्तान के चरमपंथी संगठन कभी नहीं चाहेंगे कि भारत के साथ आतंकवाद और नियंत्रण रेखा पर अमन बहाली जैसे मसलों पर कोई समझौता हो। वे अब भी कोई न कोई अड़ंगा डालने की कोशिश करेंगे। मगर जरूरत है कि दोनों सरकारें इसमें न उलझें। भारत को भी दिल बड़ा रखना होगा। पिछली बार उसी की तरफ से बातचीत की पहल हुई थी, मगर जैसे ही पाकिस्तानी विदेशमंत्री सरताज अजीज का बयान आया, इधर से भी जवाबी बयानों की जैसे झड़ी लग गई। भारत ने अड़ियल रुख अख्तियार कर लिया। इस बार ऐसा न हो, तो बातचीत के इस सिलसिले से सकारात्मक नतीजों की उम्मीद बन सकती है।

पेरिस हमले के बाद आतंकवाद पर काबू पाने को लेकर इन दिनों दुनिया भर में मुस्तैदी दिख रही है। जाहिर है, इसका दबाव पाकिस्तान पर भी है। इसलिए भी वह बैंकाक में सुरक्षा सलाहकारों की बैठक के लिए आसानी से राजी हो गया। पहले ही भारत उसके खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों से जुड़े अनेक दस्तावेज सार्वजनिक कर चुका है। दहशतगर्दों के पाकिस्तान में पनाह लेने संबंधी अनेक तथ्यों से अंतरराष्ट्रीय बिरादरी परिचित है। उसामा बिन लादेन के पाकिस्तान में मारे जाने के बाद जाहिर हो गया था कि वहां की सरकार किस कदर आतंकवादियों के सामने कमजोर साबित होती रही है। इसलिए इस बार भारत की बातचीत की पेशकश को अगर वह ठुकराता या उसे विफल करने का कोई बहाना तलाशता तो उसके लिए मुश्किल होती।

अब दोनों देशों के सुरक्षा सलाहकारों के बीच वार्ता के बाद भारतीय विदेशमंत्री और प्रधानमंत्री के भी पाकिस्तान जाने का रास्ता साफ हो गया है। जब दोनों देशों के नेता सौहार्दपूर्ण वातावरण में आपस में बातचीत करेंगे, तो कई समस्याओं के हल निकलने की सूरत बनेगी। तनातनी के माहौल में तमाम जरूरी गतिविधियां रुक जाती हैं। इसका खमियाजा सबसे अधिक दोनों देशों के आम नागरिकों को भुगतना पड़ता है। आपस में मिलना-जुलना, कारोबारी गतिविधियां, सांस्कृतिक आदान-प्रदान, खेल-कूद के आयोजन वगैरह सब प्रभावित होते हैं। शांति बहाली की प्रक्रिया शुरू होने से इन मामलों में फिर गति आने की उम्मीद बनी है। भारत सरकार पर भी अभी तक जो विपक्ष यह आरोप लगाता रहा है कि उसके पास पाकिस्तान को लेकर कोई स्पष्ट नीति नहीं है, उस पर विराम लगेगा।