बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य में भारत और ओमान के बीच गुरुवार को हुए मुक्त व्यापार समझौते को आर्थिक मोर्चे पर एक दूरगामी असर वाली साझेदारी के तौर पर देखा जा सकता है। दरअसल, पिछले कुछ वर्षों से दुनिया के कई विकसित और शक्तिशाली देश अपने इर्द-गिर्द एक ऐसा घेरा बनाने की कोशिश में हैं, जिसमें तीसरी दुनिया के देशों की उन पर निर्भरता बनी रहे और वे मन-मुताबिक अपनी सुविधा की शर्तें उन पर थोपते रहें। जबकि पारंपरिक रूप से सहयोगी रहे या फिर नए सिरे से संबंध विकसित करने में रुचि रखने वाले देशों के मामले में भारत का रुख पहले भी परिपक्व और उदार रहा है।
इस क्रम में अब ओमान के साथ भारत ने जिस तरह व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौता किया है, वह आने वाले समय में न केवल दोनों देशों के आर्थिक संबंधों में एक नया आयाम रचेगा, बल्कि बहुध्रुवीय दुनिया में विकल्पों के नए मोर्चे भी सामने आ सकते हैं। इससे पहले भी भारत ने ताकतवर देशों के प्रभाव में आने के बजाय अपनी जरूरत के मुताबिक सहयोग के मोर्चे पर कदम बढ़ाया है।
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गौरतलब है कि भारत और ओमान के बीच पिछले करीब सात दशक से अच्छे और कूटनीतिक संबंध रहे हैं। उसी को और मजबूत करने तथा अपने व्यापार को विस्तार देने के उद्देश्य से भारत ने ओमान के साथ अब जिस मुक्त व्यापार समझौते को आकार दिया है, उसके सकारात्मक असर अगले कई दशक तक देखने को मिल सकते हैं।
इस करार के बाद दोनों देशों के बीच व्यापार और निवेश को नई गति मिलने और खासतौर पर युवाओं के लिए विभिन्न क्षेत्रों में अवसर खुलने की उम्मीद की जा रही है। समझौते के तहत वस्त्र, कृषि उत्पाद और चमड़े के सामान सहित भारत के अट्ठानबे फीसद निर्यात को ओमान में शुल्क-मुक्त पहुंच मिलेगी। वहां के प्रमुख सेवा क्षेत्रों में भारतीय कंपनियों को विदेशी निवेश की अनुमति में भी बड़ी कामयाबी मिली है।
जाहिर है, इस सबसे श्रम की प्रमुखता वाले कई क्षेत्रों को बड़ा लाभ मिलेगा, रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे और लघु तथा मध्यम उद्योगों के साथ-साथ कारीगरों से लेकर महिलाओं के नेतृत्व वाले उद्यमों को मजबूती मिलेगी।
इसके अलावा, खाड़ी क्षेत्र में ओमान ऐसा देश है, जहां भारतीय सेना की तीनों शाखाएं नियमित संयुक्त अभ्यास करती हैं। इस लिहाज से देखें तो भारत को जिस तरह पहले से ही ओमान के दुक्म बंदरगाह पर जरूरत होने पर साजो-सामान के उपयोग की सुविधा मिली हुई है, उसमें नया समझौता सहयोग को और मजबूत करेगा।
दुक्म बंदरगाह भारत के लिए एक वैकल्पिक रणनीतिक ठिकाना है और यह भारतीय नौसेना को पश्चिमी हिंद महासागर में मजबूत आधार देता है। ऐसे में दोनों देशों के बीच हुए करार की अहमियत समझी जा सकती है।
खासतौर पर पिछले कुछ महीने से जिस तरह अमेरिका ने मनमाने तरीके से शुल्क लगा कर अपनी सुविधा के मुताबिक नीतियां बनाने के लिए भारत पर दबाव डाला, वह एक तरह से व्यापार में वर्चस्व कायम करने की कोशिश थी। दूसरी ओर, चीन है, जिसे कारोबार के मामले में भारत के लिए वैकल्पिक रास्ते खुलने से निराशा होगी।
मगर ओमान सहित अनेक देशों के साथ भारत के अच्छे संबंध रहे हैं और उसे मजबूत करने के क्रम में विकल्प खुलते हैं, तो यह भारत की उपलब्धि है। अमेरिका और चीन जैसे देशों के लिए भी यह सोचने का मौका है कि बहुध्रुवीय विश्व और बदलते समीकरण के दौर में क्या कोई देश अपना वर्चस्व कायम करने की नीति पर ज्यादा देर टिक सकता है!
