रविवार को एसएसबी यानी भारत के सशस्त्र सीमा बल के कुछ कर्मियों का नेपाल की सीमा में चले जाना और वहां कई घंटे उनका हिरासत में रहना किसी संघर्ष विराम के उल्लंघन जैसी घटना नहीं है, जैसी कि पाकिस्तान के साथ लगती सरहद या नियंत्रण रेखा पर जब-तब होती रहती है। फिर भी, इस घटना को लेकर सुर्खियां बनीं तो शायद इसकी वजह यही रही होगी कि हाल के महीनों में भारत और नेपाल के रिश्ते तनाव भरे रहे हैं। नेपाल ने एसएसबी के तेरह कर्मियों को हिरासत में ले लिया, जो संदिग्ध तस्करों का पीछा करते हुए उसके क्षेत्र में घुस गए थे। गौरतलब है कि दोनों देशों की सीमा खुली हुई है। अलबत्ता भारत की तरफ एसएसबी और नेपाल की तरफ एपीएफ के जवान सुरक्षा के लिए तैनात रहते हैं। सीमा प्रहरी भी औरों की तरह दूसरी तरफ जा सकते हैं, पर निहत्थे होकर ही। ताजा घटना असामान्य मानी गई तो इसीलिए कि एसएसबी के जवान हथियारों से लैस थे, भले वे पचास या सौ मीटर ही भीतर गए होंगे। दोनों तरफ के सीमा सुरक्षा बलों के आला अफसरों के बीच हुई बातचीत और फील्ड कमांडरों की बैठक के बाद मसला सुलझ गया।

यही नहीं, एसएसबी प्रमुख ने कहा है कि नेपाल के आर्म्ड पुलिस फोर्स के लोगों ने एसएसबी के जवानों के साथ बहुत अच्छा सलूक किया। फिर भी, जो हुआ वह चिंता का विषय है। इसलिए कि ऐसे वाकये से नेपाल में इस धारणा को खुराक मिलती है कि भारत उसके साथ चौधराहट दिखा रहा है। वहां पहले ही भारत को लेकर माहौल अच्छा नहीं है। नेपाल में आम धारणा है कि नए संविधान के प्रति मधेसियों के विरोध के पीछे भारत का हाथ है। सितंबर में संविधान लागू होने की घोषणा के बाद से मधेसियों के विरोध-प्रदर्शनों का सिलसिला चलता रहा है। सीमा पर नाकेबंदी को उन्होंने अपने विरोध का एक खास तरीका बना रखा है। इसके चलते नेपाल में महीनों से र्इंधन और अन्य बहुत-सी जरूरी चीजों की आपूर्ति प्रभावित होती रही है। इसी से तस्करी बढ़ी होगी।

सोमवार को नेपाल के उपप्रधानमंत्री कमल थापा ने भारतीय राजदूत से कहा कि उनका देश मानवीय संकट की ओर बढ़ रहा है। साथ ही थापा ने आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति सुचारु करने के लिए भारत की सहायता मांगी है। पुराने दोस्ताना रिश्ते को देखते हुए नेपाल की ऐसी अपेक्षा स्वाभाविक और उचित है। पर नेपाली नेतृत्व को यह भी सोचना होगा कि पड़ोसी देश पर दोष मढ़ कर तराई में और सीमा पर स्थायी शांति कायम नहीं की जा सकती। यह तभी हो सकता जब मधेसियों की नाराजगी दूर हो। संविधान लागू होने के बाद हुई हिंसा में अब तक पचास लोग मारे जा चुके हैं। फिर भी विरोध-प्रदर्शन थमे नहीं हैं। इसे प्रायोजित कहना ठीक नहीं। मधेसियों को लगता है कि नए संविधान के तहत राज्यों का जो स्वरूप सोचा गया है उससे विधायिका में उनका प्रतिनिधित्व उनकी आबादी के अनुपात में काफी कम रहेगा। नए संविधान को लेकर कई जनजातियां भी आशंकित हैं। निश्चय ही भारत की तरफ से ऐसा कुछ भी नहीं होना चाहिए जिससे लगे कि वह क्षेत्रीय महाशक्ति की तरह पेश आ रहा है। यह अच्छी बात है कि एसएसबी ने ताजा घटना की जांच का आदेश दिया है। पर नेपाल को सोचना होगा कि मधेसी असंतोष का तर्कसंगत समाधान निकालने की जिम्मेदारी उसकी है।