देश में स्वास्थ्य सेवाओं में तमाम कमियों और चुनौतियों के बीच शिशु मृत्यु दर में गिरावट इस बात का संकेत है कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान आम लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार आया है। भारत के महापंजीयक की ओर से जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक, सतत विकास लक्ष्यों की ओर देश कदम जरूर बढ़ा रहा है, लेकिन एक बड़ी चुनौती शिशु मृत्यु दर को कम करने की रही है। लंबे समय से मातृ-शिशु देखभाल के लिए नीतियां और योजनाएं भी बनाई जाती रहीं।

इस क्रम में प्रसव के दौरान बेहतर चिकित्सा सुविधाएं देने से लेकर टीकाकरण आदि के लिए जमीनी स्तर पर कार्य किए गए। इसी का परिणाम है कि शिशु मृत्यु दर कम करने में बड़ी कामयाबी हासिल हुई। बुधवार को जारी नमूना पंजीकरण प्रणाली के मुताबिक, देश में शिशु मृत्यु दर प्रति एक हजार पर पच्चीस के निम्नतम स्तर पर पहुंच गई है। एक दशक पहले यह संख्या चालीस थी। इस लिहाज से देखें तो मृत्यु दर में 37.5 फीसद गिरावट बताती है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं तक आम लोगों और खासकर महिलाओं की पहुंच की स्थिति में सुधार हुआ है।

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हालांकि, स्वास्थ्य सुविधाओं तक सभी लोगों की पहुंच के मामले में कई स्तर पर असमानता अब भी बनी हुई है और इस तस्वीर में अभी काफी सुधार होना बाकी है, इसके बावजूद ग्रामीण क्षेत्रों में भी शिशु मृत्यु दर कम होना महत्त्वपूर्ण है। यहां एक हजार शिशुओं पर यह दर चौवालीस से घट कर अट्ठाईस रह गई है। वहीं शहरी क्षेत्रों में यह दर सत्ताईस से अठारह पर आ गई। इससे स्पष्ट है कि एक ओर जहां स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर हुई हैं, वहीं लोगों के बीच गर्भवती महिलाओं की सेहत और सुरक्षित प्रसव को लेकर जागरूकता बढ़ी है।

इसके नतीजे भी सामने हैं। मगर आज भी आबादी के एक बड़े हिस्से के बीच प्रसव के बाद महिलाओं और उनके शिशुओं को निरंतर और पर्याप्त पोषक आहार न मिलने की समस्या बनी हुई है। इस ओर सरकार को ध्यान देना होगा। बहरहाल, कई चुनौतियों के बीच वर्ष 1971 के मुकाबले शिशु मृत्यु दर में अस्सी फीसद की गिरावट भविष्य को लेकर नई उम्मीद जगाती है।