अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं में भारत के प्रदर्शन को लेकर अक्सर सवाल उठते रहे हैं कि इतने बड़े देश के खिलाड़ी उपलब्धियों की कसौटी पर पीछे क्यों रह जाते हैं। हाल ही में पेरिस में हुए ओलंपिक में पदक-तालिका में भारत की स्थिति को लेकर मायूसी, चिंता और अफसोस की स्थिति देखी गई। मगर अब पेरिस में ही हुए पैरालंपिक खेल प्रतियोगिता में भारत को जिस तरह की कामयाबी मिली है, उसे अब तक के ऐसे आयोजन में भारत का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन माना जा रहा है।
पहले के मुकाबले सबसे ज्यादा पदक जीतने का बनाया कीर्तिमान
गौरतलब है कि इस बार 2024 के पेरिस पैरालंपिक में भारत के खिलाड़ियों ने शानदार प्रदर्शन किया और पहले के मुकाबले सबसे ज्यादा पदक जीतने का कीर्तिमान बनाया। भारत के हिस्से में कुल उनतीस पदक आए, जिसमें सात स्वर्ण, नौ रजत और तेरह कांस्य पदक हैं। इससे पहले तोक्यो पैरालंपिक में भारत ने उन्नीस पदक जीते थे। कहा जा सकता है कि वक्त के साथ भारत के खिलाड़ियों की क्षमता में गुणात्मक सुधार आया है और यह गहरी प्रतिबद्धता और मेहनत का नतीजा है।
यह सही है कि पैरालंपिक और ओलंपिक में खेल और उसमें पदकों की अहमियत के स्तर अलग-अलग हैं। ओलंपिक में जहां खिलाड़ी के शरीर की क्षमता का परीक्षण होता है, तो पैरालंपिक में हिस्सा लेने वाले दृढ़ संकल्प और साहस की कसौटी पर आंके जाते हैं। इसमें यह भी उजागर होता है कि शारीरिक रूप से अन्य तरह से सक्षम खिलाड़ियों की खोज, उनके प्रशिक्षण, उन्हें मिलने वाली सुविधाएं, अवसर और उन पर खर्च के मामले में देश की सरकार ने कैसा रुख अपनाया है।
पिछले दो दशकों के दौरान केंद्र और राज्य सरकारों का रुख सकारात्मक रहा है। इसका साफ असर अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में प्रदर्शन पर देखा जा रहा है, जहां भारतीय खिलाड़ी खेलों की दुनिया में उम्मीद की राह बना रहे हैं। यह ध्यान रखने की जरूरत है कि खेल का मैदान इसीलिए होता है कि उसमें जीत हासिल करने के लिए ज्यादा से ज्यादा कोशिश की जाए। जीत गए तो उससे बेहतर करने और नहीं जीते तो अगली बार जीत के लिए फिर से खुद को तैयार करने की राह पर चलते रहने की प्रक्रिया जारी रखी जाए।