इसमें कोई दो राय नहीं कि मौजूदा विश्व में भारत को अब एक ऐसी शक्ति के रूप में देखा जाने लगा है जो अंतरराष्ट्रीय पटल पर खड़ी होने वाली समस्याओं का हल निकालने में एक अहम भूमिका निभा सकता है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान वैश्विक स्तर पर सहयोग और समाधान के मकसद से बनाए गए कई समूहों के सम्मेलनों में मजबूत उपस्थिति से लेकर जी20 का नेतृत्व करने और उसके जरिए एक व्यापक दृष्टि सामने रखने के रूप में दुनिया भर के देशों ने भारत की स्पष्टता देखी है। यही वजह है कि अब भू-राजनीतिक स्तर पर खड़ी होने वाली समस्याओं के समाधान को लेकर भी भारत से उम्मीद की जाती है।
अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि खुद संयुक्त राष्ट्र की ओर से भी भारत को इस मामले में एक महत्त्वपूर्ण देश के रूप में देखा जा रहा है। मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष डेनिस फ्रांसिस ने भारत को इस विश्व निकाय का अहम सदस्य बताया। उन्होंने कहा कि वे भारत को मिसाल पेश करते हुए नेतृत्व करते रहने, संवाद और कूटनीति के जरिए स्थायी शांति का रास्ता निकालने के अपने सैद्धांतिक रुख को कायम रखने और दुनिया भर में विभाजनों को भरने के मकसद से काम करने के लिए कहेंगे।
जाहिर है, पिछले कुछ वर्षों से विश्व भर में अलग-अलग मोर्चों पर जिस तरह की जटिलताएं और मुश्किलें खड़ी हुई हैं, कई स्तर पर खेमों के रूप में देशों के समूह बन रहे हैं,उनमें खाई बढ़ रही है, उसमें किसी ऐसी कड़ी की जरूरत साफ दिखती है, जिसकी स्वीकार्यता आम हो और वह हल का रास्ता तैयार करने में मददगार साबित हो।
यह छिपा नहीं है कि पिछले कुछ समय से ऐसी स्थितियों में भारत ने कूटनीतिक मोर्चे पर कई बार अपनी मजबूत मौजूदगी दर्ज की है। रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध के अलावा इजराइल और हमास की जंग के संदर्भ में भी भारत ने किसी पक्ष में खड़ा होने के बजाय मानवीयता के हक में न्याय और औचित्य को अपने रुख की कसौटी बनाया।
युद्ध किसी भी समस्या का समाधान नहीं है, इस सूत्रवाक्य के साथ भारत ने शांति और संवाद को ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चुनौतियों का हल बताया है। संयुक्त राष्ट्र के ढांचे के भीतर भी भारत ने हर संवेदनशील मसलों पर अपना स्पष्ट रुख कायम रखा और कूटनीति और संवाद के जरिए एक बेहतर विश्व बनाने की व्यापक दृष्टि के साथ हस्तक्षेप किया।
यह सही है कि राजनीतिक और आर्थिक रूप से तेज उथल-पुथल के दौर में अलग-अलग देशों के बीच जिस तरह के विभाजन खड़े हो रहे हैं, उसके रहते वैश्विक शांति और सद्भाव कायम करना संभव नहीं होगा। ऐसे में संयुक्त राष्ट्र जैसे वैश्विक निकाय और उसके तहत स्पष्टता के साथ नीतिगत फैसला लेकर ठोस पहल की जरूरत महसूस की जा रही है।
कूटनीतिक मोर्चे से लेकर सतत विकास के मामले में ठोस योजनाओं के साथ अपने अनुभवों और बेहतर तौर-तरीकों के जरिए विभिन्न देशों के साथ सहयोग और संवाद कायम करने के मामले में भारत की अहमियत अब सभी समझते हैं। यह बेवजह नहीं है कि राजनयिक स्तर पर संवाद, कूटनीति और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के साथ ही मानवाधिकारों से संबंधित कानूनों को बरकरार रखते हुए दुनिया भर में शांति लाने के प्रयासों में भारत से महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने की उम्मीद की जाने लगी है।
गौरतलब है कि बीते वर्ष सितंबर में नई दिल्ली में आयोजित जी20 सम्मेलन के समय भी संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने भरोसा जताया था कि भारत यह सुनिश्चित करने का हर संभव प्रयास करेगा कि मौजूदा भू-राजनीतिक विभाजन मिट सके। यह सब अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में भारत की बढ़ती स्वीकार्यता का ही सूचक है।