अपने पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को सहज और शांतिपूर्ण रखने के लिए भारत ने न केवल अपनी ओर से हर स्तर पर पहल की है, बल्कि कई बार विपरीत स्थितियों में भी सकारात्मक रुख दिखाया है। मगर लंबे समय से पाकिस्तान और चीन के रवैये की वजह से सीमा पर अक्सर तनाव और टकराव के हालात पैदा होते रहे हैं और उसके लिए कौन जिम्मेदार रहा है, वह अब दुनिया जानती है। बिना किसी उकसावे के चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास जिस तरह की गतिविधियां चलाता है, उसे किसी भी कसौटी पर उचित नहीं कहा जा सकता।
भारत कूटनीतिक स्तर पर इस मसले को अक्सर उठाता रहा है। समय-समय पर होने वाली बातचीत के बाद कुछ समय तक सीमा पर शांति की स्थिति दिखती है, मगर फिर चीन की ओर से कोई न कोई ऐसी गतिविधि शुरू हो जाती है, जिससे उसकी मंशा पर संदेह होता है।
शांति बहाली की जगी उम्मीद
ज्यादा दिन नहीं बीते हैं, जब भारत और चीन के बीच बातचीत के बाद कई सकारात्मक पहलकदमियां हुईं और शांति बहाली की उम्मीद जगी। इसके तहत वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अपने सैनिकों को पीछे लौटाने के कदम उठाए गए। मगर पिछले कुछ वर्षों में भारत को लेकर चीन का जैसा रुख सामने आया है, उसके मद्देजनर यह आशंका लगातार बनी हुई है कि दोनों देशों के बीच तनाव के हालात में सुधार की स्थितियां कब तक बनी रहेंगी।
अब हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती सैन्य आक्रामकता ने बहुस्तरीय तनाव में बढ़ोतरी की है। वास्तविक नियंत्रण रेखा पर फिलहाल शांति को भारत राहत के रूप में देख सकता है, लेकिन अगर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की गतिविधियों की वजह से दुनिया भर में चिंता बढ़ रही है, तो यह भारत के लिए भी सचेत रहने का वक्त है।
हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की नहीं बदली मंशा
शायद यही वजह है कि वैश्विक स्तर पर बढ़ती चिंता की पृष्ठभूमि में नौसेना प्रमुख एडमिरल दिनेश त्रिपाठी ने सोमवार को कहा कि पूर्वी लद्दाख में भारतीय और चीन की सेना के बीच गतिरोध भले खत्म हुआ है, मगर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की मंशा नहीं बदली है। उस क्षेत्र और दक्षिण चीन सागर में चीन की सैन्य ताकत का प्रदर्शन भारत के लिए चिंता का विषय है।
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यह हकीकत है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन खुद को इस रूप में पेश कर रहा है, जिसमें उसे दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति के तौर पर देखा-माना जाए। यह उसकी अपनी स्थितियों के अनुकूल हो सकता है, लेकिन इस क्रम में वह अपने पड़ोसी देशों की संप्रभुता का हनन या उनके सामने जोखिम पैदा करके करना चाहता है, तो यह हर लिहाज से गलत है।
सवाल है कि अरुणाचल प्रदेश में उसकी गतिविधियों को किस रूप में देखा जाएगा और उसके क्या कारण हैं? भारत अगर सीमा से संबंधित विवाद के सभी प्रश्नों का हल करना चाहता है, तो चीन को इस पर सकारात्मक प्रतिक्रिया देनी चाहिए और अपनी ईमानदार इच्छाशक्ति के साथ शांति के लिए बनी सहमति पर अमल करना चाहिए।