युद्ध का मैदान अंतिम तौर पर किसी ठोस समाधान की ओर नहीं ले जाता। इसका दूरगामी प्रभाव आसपास के देशों पर ही नहीं, पूरे विश्व पर पड़ता है। इतनी प्रगति का क्या फायदा, जब कोई देश युद्ध को लेकर अत्यधिक आक्रामक होकर दूसरे देशों के लोगों और यहां तक कि अपने नागरिकों का भी भविष्य रसातल में ले जाए। यह दुखद है कि दुनिया आज भी युद्ध के भयावह मंजर देख रही है। एक दूसरे पर महीनों से हमले कर रहे देशों को रोक पाने में संयुक्त राष्ट्र भी असहाय है। हैरत की बात है कि संवाद और कूटनीति के इस दौर में आज चंद देश प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से युद्ध कर रहे हैं, बिना यह सोचे कि उनकी पीढ़ियां दशकों पीछे चली जाएंगी।
विश्व में लगातार बढ़ते संघर्ष के बीच भारत ने एक बार फिर शांति के प्रति अपना सरोकार जाहिर किया है। उसने याद दिलाया है कि युद्ध से कोई ठोस हल नहीं निकलता। रोम में ‘एमईडी मेडिटेरेनियन संवाद’ के दसवें संस्करण में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पश्चिम एशिया में द्वि-राष्ट्र का समर्थन करते हुए स्पष्ट किया है कि सैन्य अभियानों में बड़े पैमाने पर नागरिकों की मौत को भारत अस्वीकार्य मानता है।
इसमें कोई दो राय नहीं कि अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों की अवहेलना नहीं की जा सकती। इजराइल-फिलस्तीन संघर्ष और रूस-यूक्रेन युद्ध में हजारों नागरिक मारे जा चुके हैं। भारी तबाही के दृश्यों ने पूरे विश्व को विचलित कर दिया है। पश्चिम एशिया लंबे समय से संघर्ष का दौर देख रहा है। इससे किसी पक्ष का पलड़ा भारी होता दिखा हो सकता है, लेकिन इससे जन-धन की भारी क्षति हुई। खासतौर पर कमजोर पड़ने वाले देश की वर्षों और दशकों के विकास की उपलब्धियां बर्बाद हो गईं।
ऐसे में युद्धविराम की आवश्यकता हर कोई महसूस कर रहा है। भारत ने इसकी पुरजोर हिमायत की है, क्योंकि संयम बरत कर और परस्पर संवाद को आगे बढ़ाते हुए ही युद्ध क्षेत्र से बाहर समस्या का समाधान निकाला जा सकता है। भारत ने संकेत दिया है कि वह अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक प्रयास के लिए सार्थक योगदान देने के लिए तैयार है। पश्चिम एशिया में तत्काल संघर्षविराम कराने के लिए कुछ बड़े देशों को भी आगे आना चाहिए, क्योंकि शांति कायम होने से ही दुनिया आगे बढ़ेगी।